मूल प्रार्थना
भग॑ ए॒व भग॑वाँ२॥ऽ अ॒स्तु देवा॒स्ते॑न व॒यं भग॑वन्तः स्याम।
तं त्वा॑ भग॒ सर्व॒ इज्जो॑हवीति॒ स नो॑ भग पुर ए॒ता भ॑वे॒ह॥४५॥
यजुः ३४।३८
व्याख्यान—हे सर्वाधिपते! महाराजेश्वर! आप “भगः” परमैश्वर्यस्वरूप होने से भगवान् हो। हे “देवाः” विद्वानो! “तेन” (भगवतेश्वरेण प्रसन्नेन तत्सहायनैव) उस भगवान् प्रसन्न ईश्वर के सहाय से हम लोग परमैश्वर्ययुक्त हों। हे “भग” परमेश्वर! सर्वसंसार “तन्त्वा” उन आपको ही ग्रहण करने को अत्यन्त इच्छा करता है, क्योंकि कौन ऐसा भाग्यहीन मनुष्य है जो आपको प्राप्त होने की इच्छा न करे, सो आप हमको प्रथम से प्राप्त हों, फिर कभी हमसे आप और ऐश्वर्य अलग न हो। आप अपनी कृपा से इसी जन्म में परमैश्वर्य का यथावत् भोग हम लोगों को करावें और आपकी सेवा में हम नित्य तत्पर रहें॥४५॥