089 Yo Nah Pita

0
142

मूल स्तुति

यो नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता यो वि॑धा॒ता धामा॑नि॒ वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑।

यो दे॒वानां॑ नाम॒धा एक॑ ए॒व तꣳस॑म्प्र॒श्नं भुव॑ना यन्त्य॒न्या॥४२॥

यजु॰ १७।२७

व्याख्यानहे मनुष्यो! जो अपना “पिता (नित्य पालन करनेवाला) “जनिता (जनक) उत्पादक, “विधाता सब मोक्षसुखादि कामों का विधायक (सिद्धिकर्त्ता) “विश्वा सब भुवन, लोक-लोकान्तर की “धामानि अर्थात् स्थिति के स्थानों को यथावत् जाननेवाला सब जातमात्र भूतों में  विद्यमान है, जो “देवानां नामधा दिव्य सूर्यादिलोक तथा इन्द्रियादि और विद्वानों का नाम व्यवस्थादि करनेवाला “एकः, एव अद्वितीय वही है, अन्य कोई नहीं। वही स्वामी और पितादि अपने लोगों का है, इसमें शंका नहीं रखनी, तथा उसी परमात्मा के सम्यक् प्रश्नोत्तर करने में विद्वान्, वेदादि शास्त्र और प्राणिमात्र प्राप्त हो रहे हैं, क्योंकि सब पुरुषार्थ यही है कि परमात्मा, उसकी आज्ञा और उसके रचे जगत् का यथार्थ से निश्चय (ज्ञान) करना। उस से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार प्रकार के पुरुषार्थ के फलों की सिद्धि होती है, अन्यथा नहीं। इस हेतु से तन, मन, धन और आत्मा इनसे प्रयत्नपूर्वक ईश्वर के सहाय से सब मनुष्यों को धर्मादि पदार्थों की यथावत् सिद्धि अवश्य करनी चाहिए॥४२॥

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here