मूल प्रार्थना
सोम॑ रार॒न्धि नो॑ हृ॒दि गावो॒ न यव॑से॒ष्वा।
मर्य॑इव॒ स्व ओ॒क्ये॑॥३७॥ऋ॰ १।६।२१।३
व्याख्यान—हे “सोम” सोम्य! सौख्यप्रदेश्वर! आप कृपा करके “रारन्धि, नो हृदि” हमारे हृदय में यथावत् रमण करो। (दृष्टान्त)—जैसे सूर्य की किरण, विद्वानों का मन और गाय पशु अपने-अपने विषय और घासादि में रमण करते हैं * वा जैसे “मर्यः, इव, स्वे, ओक्ये” मनुष्य अपने घर में रमण करता है, वैसे ही आप सदा स्वप्रकाशयुक्त हमारे हृदय (आत्मा) में रमण कीजिए, जिससे हमको यथार्थ सर्वज्ञान और आनन्द हो॥३७॥
[* दृष्टान्त का एकदेश रमणमात्र लेना। ]