मूल स्तुति
सोम॑ गी॒र्भिष्ट्वा॑ व॒यं व॒र्धया॑मो वचो॒विदः॑।
सु॒मृ॒ळी॒को न॒ आ वि॑श॥३६॥ऋ॰ १।६।२१।१
व्याख्यान—हे “सोम” सर्वजगदुत्पादकेश्वर! आपको “वचोविदः” शास्त्रवित् हम लोग स्तुतिसमूह से “वर्धयामः” सर्वोपरि विराजमान मानते हैं। “सुमृळीकः, नः आविश”, क्योंकि हमको सुष्ठु सुख देनेवाले आप ही हो, सो कृपा करके हमको आप आदेश करो, जिससे हम लोग अविद्यान्धकार से छूट और विद्या सूर्य को प्राप्त होके आनन्दित हों॥३६॥