मूल प्रार्थना
सेमं नः॒ काम॒मा पृ॑ण॒ गोभि॒रश्वैः॑ शतक्रतो।
स्तवा॑म त्वा स्वा॒ध्यः॑॥३५॥ऋ॰ १।१।३१।४
व्याख्यान—हे “शतक्रतो” अनन्तक्रियेश्वर! आप असंख्यात विज्ञानादि यज्ञों से प्राप्य हो तथा अनन्तक्रियाबलयुक्त हो, सो आप “गोभिरश्वैः” गाय, उत्तम इन्द्रिय, श्रेष्ठ पशु, सर्वोत्तम अश्वविद्या (विमानादियुक्त) तथा ‘अश्व’ अर्थात् श्रेष्ठ घोड़ादि पशुओं और चक्रवर्ती राज्यैश्वर्य से “सेमं, नः, काममापृण” हमारे काम को परिपूर्ण करो। फिर हम भी “स्तवाम, त्वा, स्वाध्यः” सुबुद्धियुक्त होके उत्तम प्रकार से आपका स्तवन (स्तुति) करें। हमको दृढ़ निश्चय है कि आपके विना दूसरा कोई किसी का काम पूर्ण नहीं कर सकता। जो आपको छोड़के दूसरे का ध्यान वा याचना करते हैं, उनके सब काम नष्ट हो जाते हैं॥३५॥