028 Rishirhi Poorvaja Asyeka

0
158

मूल स्तुति

ऋषि॒र्हि पू॑र्व॒जा अस्येक॒ ईशा॑न॒ ओज॑सा।

इन्द्र॑ चोष्कू॒यसे॒ वसु॑॥२८॥ऋ॰ ५।८।१७।१

व्याख्यानहे ईश्वर! “ऋषिः सर्वज्ञ “पूर्वजाः और सबके पूर्वजनक “ एकः एक, अद्वितीय “ईशानः ईशन-कर्त्ता, (अर्थात् ईश्वरता करनेहारे) तथा सबसे बड़े प्रलयोत्तरकाल में आप ही रहनेवाले “ओजसा अनन्त-पराक्रम से युक्त हो। हे “इन्द्र महाराजाधिराज! “चोष्कूयसे वसु सब धन के दाता, शीघ्र कृपा का प्रवाह अपने सेवकों पर कर रहे हो। आप अत्यन्त आर्द्रस्वभाव हो॥२८॥

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here