मूल स्तुति
ऋषि॒र्हि पू॑र्व॒जा अस्येक॒ ईशा॑न॒ ओज॑सा।
इन्द्र॑ चोष्कू॒यसे॒ वसु॑॥२८॥ऋ॰ ५।८।१७।१
व्याख्यान—हे ईश्वर! “ऋषिः” सर्वज्ञ “पूर्वजाः” और सबके पूर्वजनक “ एकः” एक, अद्वितीय “ईशानः” ईशन-कर्त्ता, (अर्थात् ईश्वरता करनेहारे) तथा सबसे बड़े प्रलयोत्तरकाल में आप ही रहनेवाले “ओजसा” अनन्त-पराक्रम से युक्त हो। हे “इन्द्र” महाराजाधिराज! “चोष्कूयसे वसु” सब धन के दाता, शीघ्र कृपा का प्रवाह अपने सेवकों पर कर रहे हो। आप अत्यन्त आर्द्रस्वभाव हो॥२८॥