ऋ॒जु॒नी॒ती नो॒ वरु॑णो मि॒त्रो न॑यतु वि॒द्वान्।
अ॒र्य॒मा दे॒वैः स॒जोषाः॑॥१८॥ऋ॰ १।६।१७।१
व्याख्यान—हे महाराजाधिराज परमेश्वर! आप हमको “ऋजुनीती” सरल (शुद्ध) कोमलत्वादिगुणविशिष्ट चक्रवर्ती राजाओं की नीति को “नयतु” कृपादृष्टि से प्राप्त करो। आप “वरुणः” सर्वोत्कृष्ट होने से वरुण हो, सो हमको वरराज्य, वरविद्या, वरनीति देओ तथा [मित्रः] सबके मित्र शत्रुतारहित हो, हमको भी आप मित्रगुणयुक्त न्यायाधीश कीजिए तथा आप सर्वोत्कृष्ट विद्वान् हो, हमको भी सत्यविद्या से युक्त सुनीति देके साम्राज्याधिकारी सद्यः कीजिए तथा आप “अर्यमा” (यमराज) प्रियाप्रिय को छोड़के न्याय में वर्त्तमान हो, सब संसार के जीवों के पाप और पुण्यों की यथायोग्य व्यवस्था करनेवाले हो सो हमको भी आप तादृश करें, जिससे “देवैः, सजोषाः” आपकी कृपा से विद्वानों वा दिव्य गुणों के साथ उत्तम प्रीतियुक्त आपमें रमण और आपका सेवन करनेवाले हों! हे कृपासिन्धो भगवन्! हम पर सहाय करो जिससे सुनीतियुक्त होके हमारा स्वराज्य अत्यन्त बढ़े॥१८॥