019 Twam Somaasi

0
97

मूल स्तुति

त्वं सो॑मासि॒ सत्प॑ति॒स्त्वं राजो॒त वृ॑त्र॒हा।

त्वं भ॒द्रो अ॑सि॒ क्रतुः॑॥१९॥ऋ॰ १।६।१९।५

व्याख्यानहे “सोम राजन्! सत्पते! परमेश्वर! तुम ‘सोम, सर्वसवनकर्त्ता (सबका सार निकालनेहारे), प्राप्यस्वरूप, शान्तात्मा हो तथा सत्पुरुषों का प्रतिपालन करनेवाले हो, तुम्हीं सबके राजा “उत और “वृत्रहा मेघ के रचक, धारक और मारक हो, भद्रस्वरूप, भद्र करनेवाले और “क्रतुः सब जगत् के कर्त्ता आप ही हो॥१९॥

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here