013 Twamasya Paare

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मूल स्तुति

त्वम॒स्य पा॒रे रज॑सो॒ व्यो॑मनः॒ स्वभू॑त्योजा॒ अव॑से धृषन्मनः।

च॒कृ॒षे भूमिं॑ प्रति॒मान॒मोज॑सो॒ऽपः स्वः॑ परि॒भूरे॒ष्या दिव॑म्॥१३॥ऋ॰ १।४।१४।२

व्याख्यानहे परमैश्वर्यवन् परमात्मन्! आकाशलोक के पार में तथा भीतर अपने ऐश्वर्य और बल से विराजमान होके दुष्टों के मन को धर्षण-तिरस्कार करते हुए सब जगत् तथा विशेष हम लोगों के “अवसे सम्यक् रक्षण के लिए “त्वम् आप सावधान हो रहे हो, इससे हम निर्भय होके आनन्द कर रहे हैं, किञ्च “दिवम् परमाकाश “भूमिम् भूमि तथा “स्वः सुखविशेष मध्यस्थलोक इन सबों को अपने सामर्थ्य से ही रचके यथावत् धारण कर रहे हो, “परिभूः एषि सब के ऊपर वर्त्तमान और सबको प्राप्त हो रहे हो, “आ दिवम् द्योतनात्मक सूर्यादि लोक “अपः अन्तरिक्षलोक और जल इन सबके प्रतिमान-(परिमाण)-कर्त्ता आप ही हो तथा आप अपरिमेय हो कृपा करके हमको अपना तथा सृष्टि का विज्ञान दीजिए॥१३॥

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