मूल प्रार्थना
वि जा॑नी॒ह्यार्या॒न् ये च॒ दस्य॑वो ब॒र्हिष्म॑ते रन्धया॒ शास॑दव्र॒तान्।
शाकी॑ भव॒ यज॑मानस्य चोदि॒ता विश्वेत्ता ते॑ सध॒मादे॑षु चाकन॥१४॥ऋ॰ १।४।१०।३
व्याख्यान—हे यथायोग्य सबको जाननेवाले ईश्वर! आप “आर्यान्” विद्या, धर्मादि उत्कृष्ट स्वभावाचरणयुक्त आर्यों को जानो, “ये च दस्यवः” और जो नास्तिक, डाकू, चोर, विश्वासघाती, मूर्ख, विषयलम्पट, हिंसादिदोषयुक्त, उत्तम कर्म में विघ्न करनेवाले, स्वार्थी स्वार्थसाधन में तत्पर, वेदविद्याविरोधी, अनार्य मनुष्य “बर्हिष्मते” सर्वोपकारक यज्ञ के ध्वंसक हैं—इन सब दुष्टों को आप “रन्धय” (समूलान् विनाशय) मूलसहित नष्ट कर दीजिए और “शासदव्रतान्” ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासादि धर्मानुष्ठानव्रतरहित, वेदमार्गोच्छेदक अनाचारियों को यथायोग्य शासन करो (शीघ्र उनपर दण्ड निपातन करो), जिससे वे भी शिक्षायुक्त होके शिष्ट हों अथवा उनका प्राणान्त हो जाए, किंवा हमारे वश में ही रहें, “शाकी” तथा जीव को परम शक्तियुक्त शक्ति देने और उत्तम कामों में प्रेरणा करनेवाले हो, आप हमारे दुष्ट कामों से निरोधक हो। मैं भी “सधमादेषु” उत्कृष्ट स्थानों में निवास करता हुआ “विश्वेत्ता ते” तुम्हारी आज्ञानुकूल सब उत्तम कर्मों की “चाकन” कामना करता हूँ, सो आप पूरी करें॥१४॥