मूल स्तुति
वाय॒वा या॑हि दर्शते॒मे सोमा॒ अर॑ङ्कृताः।
तेषां॑ पाहि श्रु॒धी हव॑म्॥७॥ऋ॰ १।१।३।१
व्याख्यान—हे अनन्तबल परेश, वायो! दर्शनीय! आप अपनी कृपा से ही हमको प्राप्त हो। हम लोगों ने अपनी अल्पशक्ति से सोम (सोमवल्यादि) ओषधियों का उत्तम रस सम्पादन किया है और जो कुछ भी हमारे श्रेष्ठ पदार्थ हैं, वे आपके लिए “अरङ्कृताः” अलङ्कृत, अर्थात् उत्तम रीति से हमने बनाये हैं वे सब आपके समर्पण किये गये हैं, उनको आप स्वीकार करो (सर्वात्मा से पान करो)। हम दीनों की पुकार सुनकर जैसे पिता को पुत्र छोटी चीज़ समर्पण करता है, उसपर पिता अत्यन्त प्रसन्न होता है, वैसे आप हमपर प्रसन्न होओ॥७॥