मूल प्रार्थना
पा॒व॒का नः॒ सर॑स्वती॒ वाजे॑भिर्वा॒जिनी॑वती।
य॒ज्ञं व॑ष्टु धि॒याव॑सुः॥८॥ऋ॰ १।१।६।४
व्याख्यान—हे वाक्पते! सर्वविद्यामय! हमको आपकी कृपा से “सरस्वती” सर्वशास्त्रविज्ञानयुक्त वाणी प्राप्त हो “वाजेभिः” तथा उत्कृष्ट अन्नादि के साथ वर्त्तमान “वाजिनीवती” सर्वोत्तम क्रियाविज्ञानयुक्त “पावका” पवित्रस्वरूप और पवित्र करनेवाली सदैव सत्यभाषणमय मङ्गलकारक वाणी आपकी प्रेरणा से प्राप्त होके आपके अनुग्रह से “धियावसुः” परमोत्तम बुद्धि के साथ वर्त्तमान निधिस्वरूप यह वाणी “यज्ञं वष्टु” सर्वशास्त्रबोध और पूजनीयतम आपके विज्ञान की कामनायुक्त सदैव हो, जिससे हमारी सब मूर्खता नष्ट हो और हम महापाण्डित्ययुक्त हों॥८॥