मूल प्रार्थना
त॒नू॒पाऽ अ॑ग्नेऽसि त॒न्वं मे पाह्यायु॒र्दाऽ अ॑ग्ने॒ऽस्यायु॑र्मे देहि।
व॒चो॒र्दाऽ अ॑ग्नेऽसि॒ वर्चो॑ मे देहि। अग्ने॒ यन्मे त॒न्वाऽ ऊ॒नं तन्म॒ऽआपृ॑ण॥३३॥
यजु॰ ३।१७
व्याख्यान—हे सर्वरक्षकेश्वराग्ने! तू हमारे शरीर का रक्षक है। सो शरीर को कृपा से पालन कर, हे महावैद्य! आप आयु (उमर) बढ़ानेवाले तथा रक्षक हो, मुझको सुखरूप उत्तमायु दीजिए। हे अनन्त विद्यातेजः! आप “वर्चः” विद्यादि तेज (प्रकाश) अर्थात् यथार्थ विज्ञान देनेवाले हो, मुझको सर्वोत्कृष्ट विद्यादि तेज देओ। पूर्वोक्त शरीरादि की रक्षा से हमको सदा आनन्द में रक्खो और जो-जो कुछ भी शरीरादि में “ऊनम्” न्यून हो, उस-उस को कृपादृष्टि से सुख और ऐश्वर्य के साथ सब प्रकार से आप पूर्ण करो। किसी आनन्द वा श्रेष्ठ पदार्थ की न्यूनता हमको न रहे। आपके पुत्र हम लोग जब पूर्णानन्द में रहेंगे तभी आप पिता की शोभा है, क्योंकि लड़के-लोग छोटी वा बड़ी चीज़ अथवा सुख पिता-माता को छोड़ किससे माँगें? सो आप सर्वशक्तिमान् हमारे पिता, सब ऐश्वर्य तथा सुख देनेवालों में पूर्ण हो॥३३॥