मूल प्रार्थना
तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि। वी॒र्यमसि वी॒र्यं मयि॑ धेहि॒।
बल॑मसि॒ बलं॒ मयि॑ धे॒ह्योजो॒ऽस्योजो॒ मयि॑ धेहि।
म॒न्युर॑सि म॒न्युं मयि॑ धेहि॒। सहो॑ऽसि॒ सहो॒ मयि॑ धेहि॥९॥यजु॰ १९।९
व्याख्यान—हे स्वप्रकाश! अनन्ततेज! आप अविद्यान्धकार से रहित हो, किंच सत्यविज्ञान, तेजःस्वरूप हो, आप कृपादृष्टि से मुझमें वही तेज धारण करो, जिससे मैं निस्तेज, दीन और भीरु कहीं, कभी न होऊँ। हे अनन्तवीर्य परमात्मन्! आप वीर्यस्वरूप हो, बलयुक्त हो, “बलं मयि धेहि” आप भी सर्वोत्तम बल स्थिर मुझमें भी रक्खें। हे अनन्तपराक्रम! आप “ओजः” पराक्रमस्वरूप हो सो मुझमें भी उसी पराक्रम को सदैव धारण करो। हे दुष्टानामुपरि क्रोधकृत्! मुझमें भी दुष्टों पर क्रोध धारण कराओ। हे अनन्तसहनस्वरूप! मुझमें भी आप सहनसामर्थ्य धारण करो, अर्थात् शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा इनके तेजादि गुण कभी मुझमें से दूर न हों, जिससे मैं आपकी भक्ति का स्थिर अनुष्ठान करूँ और आपके अनुग्रह से संसार में भी सदा सुखी रहूँ॥९॥