070 Indro Vishwasya Rajati

0
154

मूल प्रार्थना

इन्द्रो॒ विश्व॑स्य राजति।

शं नो॑ऽअस्तु द्वि॒पदे॒ शं चतु॑ष्पदे॥२१॥

शं नो॒ वातः॑ पवता॒ शं न॑स्तपतु॒ सूर्यः॑।

शं नः॒ कनि॑क्रदद् दे॒वः प॒र्जन्यो॑ऽअ॒भि व॑र्षतु॥२२॥

अहा॑नि॒ शं भव॑न्तु नः॒ शꣳरात्रीः॒ प्रति॑ धीयताम्।

शं न॑ इन्द्रा॒ग्नी भ॑वता॒मवो॑भिः॒ शं न॒ इन्द्रावरु॑णा रा॒तह॑व्या।

शं न॑ इन्द्रापू॒षणा॒ वाज॑सातौ॒ शमिन्द्रा॒सोमा॑ सुवि॒ताय॑ शंयोः॥२३॥

यजु॰ ३६।८। १०। ११॥

व्याख्यानहे इन्द्र! आप परमैर्श्ययुक्त सब संसार के राजा हो, सर्वप्रकाशक हो। हे रक्षक! आप कृपा से “नः हम लोगों के “द्विपदे जो पुत्रादि, उनके लिए परमसुखदायक होओ तथा “चतुष्पदे हस्ती, अश्व और गवादि पशुओं के लिए भी परमसुखकारक होओ, जिससे हम लोगों को सदा आनन्द ही रहे॥२१॥

हे सर्वनियन्तः! हमारे लिए सुखकारक, सुगन्ध, शीतल और मन्दमन्द वायु सदैव चले। एवं, सूर्य भी सुखकारक ही तपे। तथा मेघ भी सुख का शब्द लिये, अर्थात् गर्जनपूर्वक सदैव काल-काल में सुखकारक वर्षे, जिससे आपके कृपापात्र हम लोग सुखानन्द ही में सदा रहें॥२२॥

हे क्षणादिकालपते! सब दिवस आपके नियम से सुखरूप ही हमको हों, हमारे लिए सर्वरात्रि भी आनन्द से बीतें। दिन और रात्रियों को हे भगवन्! सुखकारक ही आप धारण करो, जिससे सब समय में हम लोग सुखी ही रहें। हे सर्वस्वामिन्! “इन्द्राग्नी सूर्य तथा अग्नि ये दोनों हमको आपके अनुग्रह से और नानाविध रक्षाओं से सुखकारक हों। “इन्द्रावरुणा रातहव्या हे प्राणाधार! होम से शुद्धिगुणयुक्त हुए आपकी प्रेरणा से वायु और चन्द्र हम लोगों के लिए सुखरूप ही सदा हों। “इन्द्रापूषणा, वाजसातौ हे प्राणपते! आपकी रक्षा से पूर्ण आयु और बलयुक्त प्राणवाले हम लोग अपने अत्यन्त पुरुषार्थयुक्त युद्ध में स्थिर रहें, जिससे शत्रुओं के सम्मुख हम निर्बल कभी न हों “इन्द्रासोमा सुविताय शंयोः (प्राणापानौ वा इन्द्राग्नी *१  इत्यादि शतपथे) हे महाराज! आपके प्रबन्ध से राजा और प्रजा परस्पर विद्यादि सत्यगुणयुक्त होके अपने ऐश्वर्य का उत्पादन करें। तथा आपकी कृपा से परस्पर प्रीतियुक्त हो [कर] अत्यन्त सुख-लाभों को प्राप्त हों। आप हम पुत्र लोगों को सुखी देखके अत्यन्त प्रसन्न हों और हम भी प्रसन्नता से आप और आपकी जो सत्य आज्ञा उसमें ही तत्पर हों॥२३॥

[*१. गोपथ उ॰ २.१॥]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here