पूछ रहा है आर्यसमाज

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कुम्भकरण से हनुमानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

कृणवन्तो विश्वमार्यम् का सपना कब पूरा होगा।
ढ़ोंग-रूढ़ियों-पाखंडों का पर्बत कब चूरा होगा।
खूंटे-खूंटे गाय दिखेंगी घर में घी-बूरा होगा।
मन्दिर-मन्दिर बने अखाड़े हर बच्चा शूरा होगा।
लड़े परस्पर बलवानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

दो सौ वर्ष हो चुके कितने वर्ष अभी सपना होगा।
मैकाले का घृणित मन्त्र हमको कब तक जपना होगा।
नयन हमारे अपने, लेकिन गैरों का सपना होगा।
दंभ-द्वेष की आग विषैली कब तक अब तपना होगा।
श्रद्धानन्दी बलिदानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

कब तक नोच नोच कर खाते जाएंगे ये जेहादी।
त्याग-तपस्या भूल मखमली होती जाएगी खादी।
कब तक अपने आंगन में नृत्य करेगी बर्बादी ।
कब तक दाग गुलामी वाले ढ़ोयेगी ये आजादी।
लेखराम से विद्वानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

दो शताब्दियां कम न हुआ करती परिवर्तन लाने को।
पाखण्डों की छाती पर वैदिक अभिवादन गाने को।
विष्णुगुप्त की पूर्व प्रतिज्ञा पुनः शिखा बंधवाने को।
गंगा गीता गायत्री गायों के प्राण बचाने को।
पतन बन चुके उत्थानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

जब तक राजनीति की घोड़ी अपने हाथ न आयेगी।
जब तक गुरुकुल आर्ष प्रणाली खुलकर मन्त्र न गायेगी।
जब तक डी.ए.वी. की गंगा हर घर द्वार न जायेगी।
तब तक अपनी फ़सल पड़ोसी के आंगन लहरायेगी।
सूखे खेतों खलिहानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

आपस में लड़ रही बिल्लियां बन्दर है सरपंच यहां।
टुकड़े डाल दिये श्वानों को बढ़ने लगे प्रपंच यहां।
भूमि हमारी, शक्ति हमारी सभी पराये मंच यहां।
डिनर लंच कर गये भेड़िये अपने हिस्से ब्रंच यहां।
लज्जित आखें मुस्कानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

आपस में लड़ रहे कबूतर डाला जाल शिकारी ने।
शेरों ने कर दिया समर्पण मारा मन्त्र मदारी ने।
भामाशाहों को ललकारा मक्खी चूस भिखारी ने।
सीख लिया थालियां घुमाना वैदिक भाण्ड पुजारी ने ।
दूध बेचते मयखानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

क्रान्ति ज्वाल से यज्ञ रचाओ पूरा जग सुरभित कर दो।
फिर अंगद चरण जमाओ शस्त्र – शास्त्र आंगन धर दो ।
प्रश्न प्रश्न हर ओर खड़े हैं सबको वैदिक उत्तर दो।
जाग ‘मनीषी’ नया रूप ले वेदमन्त्र से नभ भर दो।
शाप बन चुके वरदानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।
दयानन्द की सन्तानों से पूछ रहा है आर्यसमाज।

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