अभागिनी गाय
सपनों में अनगिन आवाजें आती हैं।
कोई नहीं दिखता व्यथा बढ़ाती है।
हाथ चाट कर कोई मुझे उठाती है।
रोती आँखों से इक गीत सुनाती है।
लौह भस्म हो जाता जिससे एक गरीब की हाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥१॥
अपने बच्चों को भूखा रख दूध तुझे देती हूँ।
बदले में रूखा-सूखा जो मिलता खा लेती हूँ।
आधे पेट जुगाली करती दे कानों की ताली।
पीला पीला दूध और घृत शुद्ध स्वर्ण की थाली।
सज्जन हित सौभाग्य सुधा दुष्टों के लिए बलाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥२॥
मेरा पंचगव्य सोना है ग्रन्थों को पढ़ देखो।
बीमारी को भगा स्वास्थ्य के शिखरों पर चढ़ देखो।
आयुर्वेद टिका है मुझ पर झूठ नहीं कहती हूँ।
फिर बतला मेरे मनमोहन क्यों हत्या सहती हूँ।
सरे आम अन्याय हो रहा जग कहता मैं न्याय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥३॥
पिघला सोना तुझे पिलाती तूड़ा भूसा खाती।
कटता माँ को देख रहे बेटों की फटे न छाती।
मेरा कृष्ण आज होता तो मुझे न रोना पड़ता।
हत्यारों के शीश काटता पाप न ढोना पड़ता।
राम कृष्ण की धरती पर भी मैं कितनी असहाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हँू॥४॥
सुनती आई देस्सां में सै देस बड़ा हरियाणा।
घी की नद्दी बग्या करै थी दूध दही का खाणा।
बिना राबड़ी रोट्टी के मेहमान नहीं जावै थे।
सँकराता में शर्त लगा छुट्टी का घी खावे थे।
कर गोवर्धन गोबर भी धन खुशियों का पर्याय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥५॥
मैं हूँ तेरे साथ साथ तू साथ निभा दे मेरा।
वरना यह जग हो जाएगा भूतोंवाला डेरा।
जीते जी ऋद्धि सिद्धि की अमर धार दे जाऊँ।
मर जाने पर भी पगले वैतरणी पार कराऊँ।
मैं अमृत हूँ संजीवन हूँ नहीं विषैली चाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हँू॥६॥
गाय कर्णसम कवच और कुण्डल भू पर लाई है।
प्राणिमात्र की रक्षा का सौगन्ध सदा खाई है।
छली बली हत्यारे यह वरदान छीनने आए।
जागो जागो पूरा हिन्दुस्थान छीनने आए।
तेरा उदय बचाने आई बन फिर पन्नाधाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥७॥
मुझे हँडेरू नहीं बनाओ अपने आँगन बाँधो।
जल में नहीं दूध घी में घर भर का आटा साँधो।
बाहर पन्नी कूड़ा कर्कट मैं खाती फिरती हूँ।
मेरी आँखों के आँसू देखो पल पल मैं मरती हूँ।
गणित लगालो बच्चों घाटा नहीं आय ही आय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥८॥
माँ न बची तो बेटे बेटी कैसे जी पाएँगे।
दूध कहाँ जब क्रूर कसाई लोहू पी जाएँगे।
कंसों शिशुपालों के वध हित कृष्ण न अब आएँगे।
हम जागे तो अपने भीतर कृष्ण खड़े पाएँगे।
मुझे बचाओ तुम्हें बचाऊँ मैं पंचों की राय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥९॥
मेरी पीड़ा सर्वप्रथम ऋषि दयानन्द ने जानी।
‘गोकरुणानिधि’ लिखी सुनाई सबको करुण कहानी।
वैज्ञानिक आगे आएँ कर अनुसन्धान दिखाएँ।
मेरे गोबर और मूत्र से भामाशाह कमाएँ।
तेरी सुख समृद्धि का मानव सबसे बड़ा उपाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥१०॥
कहाँ छुपे मेरे गोपालों गोपो अब आ जाओ।
जो माँ को खाते हैं तुम उनको कच्चा खा जाओ।
बढ़े कंस के वंश दंश शिशुपालों के आ तोड़ो।
मेरे कण्ठ कटार धरें वे सारे हाथ मरोड़ो।
एक अधूरा महाकाव्य मैं करुणा अध्याय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हँू॥११॥
अब कसाइयों को सत्ताच्युत कर सिंहासन छीनो।
हिन्दु हो पर गाय मर रही नीचे गिरो कमीनो।
हुआ न खून सफेद अगर तो अपना रक्त उबालो।
लेकर डमरू हाथ भवानी क्रुद्ध त्रिशूल उछालो।
तैंतीस कोटि देवियों देवों का अक्षय समुदाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥१२॥
कैसी कैसी मुझे यातना मिलती तुम क्या जानो।
कभी किसी हत्थे में दुर्गति देखो बेइमानो।
गर्म उबलता पानी डालें फिर कोड़ों से मारें।
जीवित पेट काट बच्चे पर भी चलती तलवारें।
कौन कहे मैं जीवित हूँ मैं तो कब से मृतप्राय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हँू॥१३॥
साधु सन्त सब छोड़ छाड़ यदि मेरी चिन्ता करलें।
अपने दण्ड कमण्डल में यदि मेरी पीड़ा भर लें।
फिर ऐसा हो सके न हरगिज एक गाय कट जाए।
अम्बर आग उगल दे पूरी घरती ही फट जाए।
तहस नहस कर दूँ सिंगों से अब बेशक कृशकाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥१४॥
या तो मेरी जय मत बोलो माँ फिर मन से बोलो।
हरफुल जाट जुलाणेवाला बनो दुष्ट सिर खोलो।
लो सौगन्ध मनीषी अपनी गाय न कट पाएगी।
गौ रक्षा हित जान भले जाती है तो जाएगी।
माँ कहलाती मारी जाती मैं कितनी निरुपाय हूँ।
लाखों की संख्या में कटती एक अभागिनी गाय हूँ॥१५॥