हम आज प्रगति की ओर चलें।
उर में जननी की अमर भक्ति।
भर नस नस में उत्साह नया।
पग में तूफानों की गति ले।
चढ़ पर्वत सागर सेतु चलें।। 1।।
हैं घोर निराशा के बादल।
छाए स्वदेश गगनांगन में।
घिर रही घोर रजनी काली।
हम ले प्रकाश की ज्योति चलें।। 2।।
गा गंगा यमुना के गायन।
केसरिया बाना पहन पहन।
सुख और शान्ति के लिए आज।
हम ओम् ध्वजा ले हाथ चले।। 3।।
ऋषिवर की पावन संस्मृति ले।
बन वेद मार्ग के अनुगामी।
मां का मन्दिर जो ध्वस्त पड़ा।
उसकी नव रचना हेतु चले।। 4।।
हैं जाग उठे भारत माँ के।
सच्चे वर वीर पुजारी सब।
हँस हँस के जीवन कुसुम चढ़ा।
हम माँ के पूजन हेतु चले।। 5।।