बढ़ता चल बढ़ता चल आर्य वीर दल।
सत्य मार्ग पर चला रुके न एक पल।। टेक।।
प्रेम का संचार परस्पर सदा रहे।
द्वेष भाव लेश मात्र भी जुदा रहे।
मन रहे पवित्र कि जैसे हो गंगाजल।। 1।।
सेवा भाव मन में सर्वदा निष्काम हो।
कर्तव्य कर्म में ना कभी विराम हो।
हों पहाड़ की तरह निश्चय सदा अचल।। 2।।
राह में तुम्हारी मुश्किलें भी आएँगी।
भीम रूप धार कर तुम्हें डराएँगी।
चीर कर मुसीबतों को जाओ तुम निकल।। 3।।
पीठ पर तुम्हारी महर्षि का हाथ हो।
ईश की दया सदा तुम्हारे साथ हो।
भक्तिभाव से पथिक जनम करो सफल।। 4।।