“चतुर्वेदी”
(तर्ज :- तुम्ही मेरी मंदिर)
ब्रह्म मेरा घर है, ब्रह्म मेरा दर है, ब्रह्म रास्ता है।
वेद की दृष्टि से, देखें तो समझें, ब्रह्म हर निशां है।।
बहुत युग बीते ब्रह्म तो नया है,
ये आनन्द स्वर है ये शाश्वत खरा है।
ये स्वर सुन मेरा अन्तस् झूमता है,
जैसे आकाश में मौन गूंजता है।। 1।।
ऋचा ज्ञान माथे का टीका धवल है,
साम राग जीवन सम्यक् उजल है।
यज्ञमय सांसे दिव्य अमरा है,
अथर्वा ये इन्द्रियां कारण समां है।। 2।।