प्रस्थान…

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गांव छोड़ा घर छोड़ा जागीर सों जर छोड़ा।

सुंदर सुभोजन मधुरतर छोड़ा है।।

धन छोड़ा धाम छोड़ा छोड़ा सुखदाता माता-

पिता भ्राता भगिनी का नाता तूने तोड़ा है।।

जगत का मोह जणकूल जान फोड़ा तूने।

जग जन कल्याण में जीवन को जोड़ा है।।

संसारी संबंध बंधनों का बन्ध छोड़ा अब।

देश धर्म को छुड़ाने दयानन्द दौड़ा है।।६।।

~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई

~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई

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