जोधपुरपति को सुबोध दयानन्द देत।
राज गणिका का दिल द्वेष ने जला दिया।।
महर्षि के पाचक को कीनो वश कामिनी ने।
हलाहल विष पयपान में मिला दिया।।
वो ही पापी पातकी को स्वामीजी ने ही स्वयं।
चुपके बिदा किया दाम भी दिला दिया।।
काराणी कहत दयानिधि दयानन्द जी ने।
खुद खूनी जनूनी जालिम को जिला दिया।।३८।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई