25. येन द्यौरुग्रा.. ३..!!

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येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढ़ा येन स्वः स्तभितं येन नाकः। यो ऽ न्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 5।। (यजु.अ.32/मं.6)

        जिस परमात्मा ने तीक्ष्ण स्वभाव वाले सूर्य आदि और भूमि को धारण किया है, जिस जगदीश्वर ने सुख को धारण किया है और जिस ईश्वर ने दुःख रहित मोक्ष को धारण किया है। जो आकाश में सब लोक-लोकान्तरों को विशेष मानयुक्त अर्थात् जैसे आकाश में पक्षी उड़ते हैं वैसे सब लोकों निर्माण करता और भ्रमण कराता है, हम लोग उस सुखदायक कामना करने के योग्य परब्रह्म की प्राप्ति के लिए सब सामर्थ्य से विशेष भक्ति करें।

किया हुआ है धारण जिसने, नभ में तेजोमय दिनमान।

परमशक्तिमय जो प्रभु करता, वसुधा को अवलम्ब प्रदान।।

सुखद मुक्तिधारक लोकों का, अन्तरिक्ष में सिरजनहार।

सुखमय उसी देव का हवि से, यजन करें हम बारंबार।।

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