18. य आत्मदा बलदा.. २..!!

0
496

य ऽ आत्मदा बलदा यस्य विश्व ऽ उपासते प्रशिषं यस्य देवाः। यस्य छाया ऽ मृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम।। 3।।(यजु.अ.25/मं.13)

        जो आत्मज्ञान का दाता, शरीर, आत्मा और समाज के बल का देनेहारा है। जिसकी सब विद्वान लोग उपासना करते हैं। जिसके प्रत्यक्ष सत्यस्वरूप शासन, न्याय अर्थात् शिक्षा को मानते हैं। जिसका आश्रय ही मोक्ष सुखदायक है। जिसका न मानना अर्थात् भक्ति इत्यादि न करना ही मृत्यु आदि दुःख का हेतु है। हम लोग उस सुखस्वरूप, सकल ज्ञान के देनेहारे परमात्मा की प्राप्ति के लिए आत्मा और अन्तःकरण से भक्ति अर्थात् उसी की आज्ञा पालन करने में तत्पर रहें।

आत्मज्ञान का दाता है जो, करता हमको शक्ति प्रदान।

विद्वद्वर्ग सदा करता है, जिसके शासन का सम्मान।।

जिसकी छाया सुखद सुशीतल, दूरी है दुःख का भंडार।

सुखमय उसी देव का हवि से, यजन करें हम बारंबार।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here