154. भिखारी नहीं स्वामी

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‘‘भिखारी नहीं स्वामी बनो’’

(१) भीख मांगना दुनियां का सबसे घटिया काम है। कहीं भी, कभी भी, किसी से भी भीख मत मांगो। भिखारी कभी सुखारी नहीं हो सकता है।

(२) भीख आदमी की आत्मा का पतन करती है। अपनी आत्मा को उन्नत करो, भीख मांगने से बचो।

(३) यदि काई भीख के समान तुम्हें कोई चीज देना चाहता है, तो उसे कह दो..
भीख कभी खुदा से भी न मांगी।
तुम तो हो अरे अदने से आदमी।।

(४) सचमुच खुदा परमात्मा से भी भीख न मांगो। इससे मानव की आदत खराब होती है।

(५) भीख दो भी मत, सीख दो। भिखारी को काम की सीख दो। भिखारी को उसकी क्षमता अनुरूप कुछ भी काम दो और उसका मूल्य दो। यह उसकी सच्ची सहायता है।

(६) कहावत भी है..
उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी भीख निदान।

(७) भीख नहीं दूसरों से गुणों की सीख लो। दत्तात्रय के चौबीस गुरु थे। विश्व में सैकड़ों गुण गुरु हैं। गुण धारण करो गुणी बन जाओगे।

(८) भीखदार मत बनो, हकदार बनो। नियत वेतन के लिए नियत समय में नियत काम ईमानदारीपूर्वक करो। अपना हक वेतन लो। हक वेतन बरकती होता है।

(९) सच्चा बरकतीराम वह है जो परमात्मा के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुरूप अपने क्षेत्र अपने कार्य करता है।

(१०) परमात्मा शुभ ही शुभ है। उसके समस्त गुण-कर्म-स्वभाव शुभ ही शुभ हैं। उसके गुण-कर्म-स्वभाव अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना सर्व-शुभ और सर्व-सुख उत्पन्न करेगा।

(११) पराश्रित होना दुःखद है। स्वाश्रित होना सुखद है। परमात्माश्रित होना भी पराश्रित होना है। स्वाश्रित होने की अन्त्यावस्था में ब्रह्म-नियम के अनुरूप परमात्मा स्वयं मुम्हारा वरण करेगा।

(१२) परमात्मा वरुण है। वर वह है जो वरण करता है। वरुण वह है जो स्वयमेव उत्कृष्ट (समकक्षों में प्रथम) का वरण करता है। वरुण द्वारा वरण किए जाने के लिए उत्कृष्ट बनो।

(१३) भिखारी दीन-हीन आत्मा है। दीन-हीन आत्मा कभी भी उत्कृष्ट नहीं हो सकता है। दीन-हीन व्यक्ति तो आत्महना होता है। और परमात्मा का यह वचन है कि आत्महना व्यक्ति के लिए गहन अन्धकार से भरा हुआ लोक तय है।

(१४) परमात्मा का राज्य रोते, रिरियाते, दीन-हीन व्यक्ति के लिए नहीं है। क्या कोई सामान्य व्यक्ति भी रोते रिरियाते दीन-हीन व्यक्ति को अपना सहकर्मी बनाना पसन्द करेगा ? परमात्मा के राज्य में शूरवीर, उत्साह, आनन्द, आह्लाद भरे साधक ही प्रवेश पा सकते हैं।

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय

पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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