प्रातःकालीन-मन्त्राः

0
170

ओं प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना।

प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम।। १।।


हे स्त्री-पुरुषों जैसे हम विद्वान् उपदेशक लोग प्रभात वेला में स्वप्रकाश स्वरूप, परमैश्वर्य के दाता और परमैश्वर्ययुक्त प्राण उदान के समान प्रिय और सर्वशक्तिमान् सूर्य-चन्द्र को जिसने उत्पन्न किया है उस परमात्मा की स्तुति करते है और भजनीय, सेवनीय, ऐश्वर्ययुक्त, पुष्टिकर्ता अपने उपासक वेद और ब्रह्माण्ड के पालन करनेहारे अन्तर्यामी प्रेरक और पापियों को रुलानेहारे और सर्वरोगनाशक जगदीश्वर की स्तुति प्रार्थना करते हैं, वैसे प्रातः समय में तुम लोग भी किया करो।


प्रातर्जितं भगमुग्रं हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता।

आध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यं भगं भक्षीत्याह।। २।।


पांच घड़ी रात्रि रहे, जयशील, ऐश्वर्य के दाता, तेजस्वी, अन्तरिक्ष के पुत्ररूप सूर्य की उत्पत्ति करनेहारे और जो कि सूर्यादि लोकों को विशेष करके धारण करनेहारा, सब ओर से धारणकर्ता, जिस किसी का भी जाननेहारा, दुष्टों का भी दण्डदाता और सब का प्रकाशक है। जिस भजनीय स्वरूप को भी इस प्रकार सेवन करता हूं और इसी प्रकार भगवान् परमेश्वर सबको उपदेश करता है कि तुम, जो मैं सूर्यादि जगत् का बनाने और धारण करनेहारा हूं, उस मेरी उपासना किया करो और मेरी आज्ञा में चला करो। जिससे तुम लोग सदा उन्नतिशील रहो। इससे हम लोग उसकी स्तुति करते हैं।


भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः।

भग प्र णो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नृवन्तः स्याम।। ३।।


हे भजनीय स्वरूप, सबके उत्पादक, सत्याचार में प्रेरक, ऐश्वर्यप्रद, सत्यधन को देनेहारे, सत्याचरण करनेहारों को ऐश्वर्यदाता आप परमेश्वर ! हमको इस प्रज्ञा को दीजिए, और उसके दान से हमारी रक्षा कीजिए। हे आप गाय आदि और घोड़े आदि उत्तम पशुओं के योग से राज्यश्री को हमारे लिए प्रकट कीजिए। हे आप की कृपा से हम लोग बहुत वीर मनुष्यवाले अच्छे प्रकार होवें।


उतेदानीं भगवन्तः स्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्।

उतोदिता मघवन्त्सूर्यस्य वयं देवानां सुमतौ स्याम।। ४।।


हे भगवन् आप की कृपा और अपने पुरुषार्थ से हम लोग इसी समय प्रकर्षता, उत्तमता की प्राप्ति में और इन दिनों के मध्य में ऐश्वर्ययुक्त और शक्तिमान होवें। और हे परमपूजित असंख्य धन देनेहारे ! सूर्यलोक के उदय में पूर्ण विद्वान् धार्मिक आप्त लोगों की अच्छी उत्तम प्रज्ञा और सुमति में हम लोग सदा प्रवृत्त रहें।


भग एव भगवाँ अस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम।

तं त्वां भग भग सर्व इज्जोहवीति स नो भगपुरएता भवेह।। ५।। (ऋ.मं.७/सू.४१/मं.१-५)


हे सकलैश्वर्यसम्पन्न जगदीश्वर ! जिससे उस आप की सब सज्जन निश्चय करके प्रशंसा करते हैं, सो आप हे ऐश्वर्यप्रद ! इस संसार और हमारे गृहाश्रम में अग्रगामी और आगे-आगे सत्य कर्मों में बढ़ानेहारे हूजिए और जिससे सम्पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त और समस्त ऐश्वर्य के दाता होने से आप ही हमारे पूजनीय देव हूजिए। उसी हेतु से हम विद्वान् लोग सकलैश्वर्यसम्पन्न होके सब संसार के उपकार में तन, मन, धन से प्रवृत्त होवें।


भावार्थ
हे अनन्त ज्ञानमय, सर्वेश्वर्यदाता, परमपिता, परमात्मा, आपकी कृपा और अपने पुरुषार्थ से हम लोग ऊपर उठते हुए सात्विक बनते हुए भगवान्/भगवती बनना चाहते हैं। शुद्ध ज्ञान, शुद्ध कर्म, शुद्ध उपासनाओं द्वारा विद्वानों की अच्छी उत्तम प्रज्ञा को प्राप्त करके संसार में जितने अच्छे लोग हैं उनमें हम भी सर्वश्रेष्ठ बनना चाहते हैं। हे प्रभुदेव आज का हमारा दिन पुरुषार्थभरा एवं शुभ उपलब्धियोंभरा हो, आलस्य-प्रमाद एवं विफलताओंभरा न हो।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here