22 अप्रैल चटगाँव शस्त्रागार पर हमला करके अंग्रेजों को नाकों चने चबवा देने वाले क्रातिकारियों में से एक और इस हमले की अगुआई कर रहे मास्टर सूर्य सेन के प्रमुख साथी लोकनाथ बल के छोटे भाई हरगोपाल बल का निर्वाण दिवस है| वर्तमान बांग्लादेश के चटगाँव जिले के कानूनगोपारा नामक गाँव में अप्रैल 1917 में प्राणकृष्ण बल के घर जन्में हरगोपाल प्रारम्भ से ही माँ भारती को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के स्वप्न देखने लगे थे| अपने इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने स्वयं को सशस्त्र क्रान्ति की राह में झोंक दिया| अपने बड़े भाई प्रसिद्द क्रांतिकारी लोकनाथ बल की प्रेरणा और उनके साथ ने नवीं कक्षा के विद्यार्थी 13 वर्षीय हरगोपाल को वो जाबांजी दी कि साथियों में वो टेगरा नाम से जाने जाने लगे।
एक विद्यालय में शिक्षक और अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए छात्रों में लोकप्रिय मास्टर सूर्यसेन ने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाने और चटगाँव को अंग्रेजों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए इतिहास प्रसिद्द और भारतीयों की जाबांजी का प्रतीक बन गए चटगाँव शस्त्रागार हमले की योजना बनायीं। मास्टर दा ने 18 अप्रैल 1930 को अपने साथियों निर्मल सेन, लोकनाथ बल, गणेश घोष, अनंत सिंह, अम्बिका चक्रवर्ती और 54 किशोरों के साथ ब्रिटिश छावनी, शस्त्रागार, टेलीग्राफ कार्यालय, रेलवे लाइन और युरोपियन क्लब पर एक साथ हमला किया। हालांकि मास्टर सूर्यसेन ने प्रारम्भ में हरगोपाल को अपनी योजना में शामिल नहीं किया था और वो केवल अपने भाई लोकनाथ का पीछा करते करते वहां पहुँच गए थे, जिसे लेकर मास्टर दा ने लोकनाथ से नाराजगी भी प्रदर्शित की थी पर बाद में हरगोपाल के हौसले, मातृभूमि पर मर मिटने के जज्बे और लक्ष्य के प्रति समर्पण ने मास्टर दा को अत्यंत प्रभावित किया और उन्होंने हरगोपाल को भी अभियान में शामिल होने की अनुमति दे दी।
हरगोपाल के बड़े भाई लोकनाथ के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के एक समूह ने उस आक्जलरी फ़ोर्स ऑफ़ इंडिया (AFI) के शस्त्रागार पर कब्ज़ा कर लिया, जो ब्रिटिश फ़ौज के अंतर्गत एक स्वैच्छिक और पार्ट टाइम फ़ोर्स थी| हालांकि इस शस्त्रागार में हथियार तो काफी मात्रा में थे पर गोला बारूद के नाम पर कुछ भी नहीं था। ये इस अभियान के लिए बड़ा झटका था क्योंकि सोचा ये गया था कि शस्त्रागार से प्राप्त गोला बारूद से अंग्रेजों से लम्बे समय तक मोर्चा लिया जा सकेगा। इस दुर्भाग्य के बाद भी मास्टर दा और उनके साथियों ने अंग्रेजी फ़ौज का जमकर मुकाबला किया और उसके सिपाहियों के दिलों में अपने नाम की दहशत बैठा दी। बाद में खुद को घिरा पाकर और शस्त्रागार पर कब्जे से कोई उद्देश्य प्राप्त ना होते देख ये सभी वीर जलालाबाद के जंगलों में भाग गए, सिवाय उनके जो इस हमले में बलिदान हो गए।
22 अप्रैल को इन्ही जंगलों में ब्रिटिश फ़ौज और पुलिस के संयुक्त दल से लोकनाथ के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने सीधा मोर्चा लिया| जलालाबाद संघर्ष भारतीय इतिहास क़े सबसे हिंसक और रक्तरंजित संघर्षो में से एक है। इसमें जहाँ एक तरफ जहाँ नाम मात्र के हथियारों के साथ किशोर भारतीय क्रांतिकारी थे तो वहीँ दूसरी तरफ भारी मशीनगानों और राइफलों से लैस 2000 पुलिस वाले। अंग्रेजी फ़ौज ने निर्लज्जतापूर्वक इन किशोर क्रांतिकारियों पर जबरदस्त फायरिंग की और एक भीषण संघर्ष छिड़ गया। इस भिडंत में 13 वर्षीय हरगोपाल ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए 6 पुलिस वालों को यमराज के पास भेज दिया पर वो स्वयं भी बुरी तरह घायल हो गए और उसी दिन 22 अप्रैल को ही उनका निधन हो गया।
इस पूरे अभियान में उनके सहित अनेक क्रान्तिकारी माँ की बलिवेदी पर शहीद हो गए,कईयों को बाद में फांसी दे दी गयी और कईयों ने आजीवन कारावास की सजा भुगती। जिन बलिदानियों ने इस पूरे अभियान में बलिदान दिया, उनके नाम है—मास्टर सूर्य सेन, तारकेश्वर दस्तीदार, निर्मल सेन, प्रीतिलता वादेदार, हरगोपाल बल ‘टेगरा’, माती कानूनगो, नरेश राय, त्रिपुरा सेन, बिधु भूषण भट्टाचार्जी, प्रभाष बल, शशांक दत्त, निर्मल लाला, जितेंद्रदास गुप्ता, मधुसूदन दत्त, पुलिन विकास घोष, अर्धेन्दु दस्तीदार, रजत सेन, देवप्रसाद गुप्ता, मनोरंजन सेन, स्वदेश राय, अमरेन्द्र नंदी एवं जीबन घोषाल। इन सभी बलिदानियों का स्मरण करते हुए वीर हुतात्मा हरगोपाल बल उपाख्य टेगरा को उनके निर्वाण दिवस पर कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|
~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी