“अगाओ थम्”
स्व थम्, बाह्य चंचल, चंचला थमन असम्भव।
स्व अचंचल, अचंचल थम्, अचंचल थमन्, अचंचल गमन।
अचंचल गमन, अगाओ पहुंचन, अगाओ थम्।। 1।।
त्रि त्वं, त्रि-राजन् त्वं, त्रिगुलाम मत भव, त्रि-जग भटकन।
यश-पुत्त-वित्त त्रि, त्रि त्वमेकं भव, अगाओ थम्।। 2।।
इन्द्रियां हैं रॉकेट, मन है फ्यूल, बुद्धि है कम्प्यूटर।
नियन्ता है आदमी, अनन्तानन्त आकाश है यात्री।
कम्प्यूटर-फ्यूल-रॉकेट अनन्त क्षम।
आदमी अगाओ में जाता थम, अगाओ थम्।। 3।।
अमीबा स्व है स्तर, अनन्त स्तर भटकन जग।
भटकन अन्ध दर-दर, उच्च स्तर है स्व।
उच्चतम अगाओ, अगाओ थम्।। 4।।
साधनाएं असंख्य, अजपाजप असंख्य, अन्तर्मौन असंख्य।
प्राणायाम असंख्य, आसन असंख्य, स्व पर है एक।
असंख्यों में एकं लख, अगाओ थम्।। 5।।
मनका है प्रकृति, मनका है मानव, धागा है अगाओ।
अदीखता धागा पहचानो, स्व-सत्ता का आदर करो।
पर-सत्ता पर की स्व-सत्ता है, अगाओ थम्।। 6।।
जस-तस समझ कठिन, जैसन-तैसन ही समझ।
बाकी सब असमझ, असमझ अनेक, समझ है एक।
अनेकं एकं गम, अगाओ थम्।। 7।।
अन्न-मन कोषीय मानस,
बहुकोष सुप्त कुछ कोष जागृत आदमी छोटा,
बहुकोष जागृत कुछ कोष सुप्त आदमी बड़ा।
सर्व कोष जागृत आदमी पूर्णतम, अगाओ थम्।। 8।।
हिन्दू मुस्लिम ईसाई साम्यवादी आदि छोटे घेरे।
चीनी भारतीय पाकिस्तानी ईरानी आदि कुछ बड़े घेरे।
धरतीवासी अर्ध-उदात्त, ब्रह्माण्डवासी उदात्तता।
उदात्तता धार, आदमी बन, अगाओ थम्।। 9।।