“ब्रह्म-पताका”
हेऽ सृष्टि के कण-कण में, प्रभु का प्यार पगे।
जनम से लेके, मरण तलक रे, मानव समझ न सके।। टेक।।
हर कुछ उसका साधन बना है।
इतनी पताकाएं, जगह-जगह पे, क्यों न समझ सके।। 1।।
जाना न उसको, पहचाना ना उसको।
तेरा ये साथी है, तेरे निकटतम, तेरे निकटतम रहे।। 2।।