साधक रहा हूं मैं साधक ही रहूंगा…

0
225

“साधक”

ऐ ब्रह्मानन्द अपने निकटतम कर ले।
साधक रहा हूं मैं साधक ही रहूंगा।।टेक।।

धन-दौलत लोगों नें अपार है जोड़ी।
खुद को किया छोटा, रह गए बस कौड़ी।
हुई भूल कहां, समझे न यहां।
रहा देखता सदा, हरदम मैं सोचता।
खुद को न भूला, तुझ को भी न भूला।
खुद ही रहा हूं मैं, सुख ही रहूंगा।। 1।।

चादर ये तन है, इसको कपड़े पहना रहे हैं लोग।
कपड़े को कपड़े, कपड़े को रंग चढ़ा रहें लोग।
और क्या गुनाह है इसके सिवा।
खुद से खुद दूर जा रहे हैं लोग।
खुद खुद के पास आ गया।
खुद खुद को तू पा गया।
खुद ही रहा हूं मैं सुख ही रहूंगा।। 2।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here