सत्य को प्रकाश न सोहात अन्ध ऊलूक को।
असत्य-निवास अन्धकार वास जाको है।।
सत्यनिष्ठ स्वामीजी ने केते-केते पाए कष्ट।
ठार मारने को कोई ताडने को ताको है।।
बरसाया कीचड़ पत्थर का काहु ने मेह।
उड़े हैं उपान कहीं असि को कड़ाको है।।
ठेर-ठेर सहिष्णुता धारत धरणी सम।
धन्य दयानन्द धन्य तेरी अहिंसा को है।।३५।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई