विशेष ज्ञान का नाम विज्ञान है। बुद्धिमत्ता, ज्ञान, विज्ञान के समन्वय पर ऊँचाई-गहराई का अन्त्य छोर पाना अध्यात्म है। प्राकृतिक नियमों की खोज तथा विष्लेषण करना विज्ञान है। प्राकृतिक, सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक नियमों के प्रयोग द्वारा ब्रह्म प्राप्ति अध्यात्म है। अध्यात्म का क्षेत्र अपने आप में विज्ञान को भी समेटे हुए है। विज्ञान का विषय प्रकृति है अध्यात्म का क्षेत्र जीव, प्रकृति, ब्रह्म है। विज्ञान विष्व का अध्ययन करते भूल जाता है कि मानव या जीव भी विष्व का एक हिस्सा है। अतः विज्ञान अधूरा अध्ययन करता है। अध्यात्म विश्व को न केवल जीवन वरन ब्रह्म समेत देखता है। यहां हम विज्ञान की अन्त्य खोज और अध्यात्म के सामान्य सूत्र की तुलना करते उपरोक्त विज्ञान अध्यात्म संबंध स्पष्ट कर रहे हैं।
आधुनिक विज्ञान का जन्म डिराक (Dirac) के इलेक्ट्रान समीकरण से दूरविन श्रोडिंगर की ”आण्विक भाषा“ से फ्रांसिक क्रिक तथा जेम्स वाटसन के ‘जीन-भाषा’ तक पहुंचा। आईंस्टीन के आपेक्षिकता के सिद्धांत से कणिका सिद्धांत या क्वांटम सिद्धांत से ‘एकक’ क्षेत्र में विज्ञान ने प्रवेश किया जिसके आधार पर हाकिंग ने ”हर कुछ सिद्धांत“ या ”एव्हरीथिंग सिद्धांत“ दिया। न्यूटन के गुरुत्व सिद्धांत बाद मैक्सवेल विद्युत-चुम्बक बल सिद्धांत और हाइगेन के अनिष्चित्तता सिद्धांत से आण्विक आंतरिक व्यवस्था में सूक्ष्म मंद प्रतिक्रिया या वीक इन्टर एक्षन सिद्धांत के जन्म बाद डॉ. अबुल कलाम और वेनबर्ग ने अल्पसत्व महासत्व या अति मंद द्युति युजन या इक्ट्रोवीक यूनिफिकेशन सिद्धांत दिया। इसके विपरीत महायुजन रूप में ‘क्वार्क-ग्लुआन’ अर्ध अक्ष घूर्णन अयन सिद्धांत का विकास हुआ जहाँ इलेक्ट्रान भी विभाजित हो क्वांटम में बदल जाता है। यह सारा सफर भारतीय संस्कृति के कठोपनिषद के ”अणोरणीयान्“ (सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतम्) बीज का विकास था जिसे आज की भाषा में नैनो तकनीक कहते हैं। इसके बाद आया धागा सिद्धांत या सूत्र सिद्धांत या स्ट्रिंग सिद्धांत। स्ट्रिंग सिद्धांत विज्ञान क्षेत्र का अति आधुनिक सिद्धांत है।
स्ट्रिंग सिद्धांत की कई संकल्पनाएं हैं जिनका समावेश ‘म’ सिद्धांत या ‘स्म’ सिद्धांत में दिया है। इस सिद्धांत का मानना है कि मूल पदार्थ का निर्माण जिन आधार तत्वों से होता है वे महीन कंपायमान धागों से बने हुए हैं। और ये धागे केवल तीन धन एक (3+1) दिषाओं में नहीं वरन बहुदिशाओं में एक साथ व्यापक हैं। लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई के साथ साथ समय को आइंस्टीन ने चौथी दिशा माना था। एम सिद्धांत जो कई धागा सिद्धांतो का सारीकरण है की व्यापकता की कल्पना करके हाकिंस ने अपने ”हर कुछ“ सिद्धांत पर प्रष्न चिन्ह लगाने शुरु कर दिए।
क्या अध्यात्म में इन सिद्धांतों के स्वरूप हैं ? धागा सिद्धांत का वैदिक स्वरूप इस प्रकार है-
”यो विद्यात् सूत्रं विततं यस्मिन्नोता इमाः प्रजाः। सूत्रस्य सूत्रं स विद्यात् स विद्यात् ब्रह्मणा महत्“ ”जो इस व्यापक विष्व की प्रजाओं में हर आयतन ओत प्रोत फैले हुए सूत्र (एक सार धागे) को जानता है, वह सूत्र के सूत्र को जानता है, वह व्यापक फैले महान ब्रह्म को जानता है। ‘सूत्र’, सूत्र के सूत्र, व्यवस्था के तत्व, आयतन ओत प्रोत, व्यापक फैले, जानने वाले जीवात्मा, जाने जानेवाले परमात्मा का स्पष्ट भाषा में समावेश वैदिक सूत्र सिद्धांत में है। ”सूत्रं विततं“ वर्तमान स्ट्रिंग सिद्धांत का आधार तथ्य है, जो बताता है कि धागा कंपयमान कई दिश आयाम सम विस्तारित है। वर्तमान विज्ञान के सारे सिद्धांतों जिसमें हाकिंस का हर कुछ सिद्धांत भी शामिल है स्वरूप दर्शाता वेद मंत्र है-
तदेजति तनैजति तद् दूरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः।।
इस मंत्र में तत्, तत् एजति, तत् न एजति का विवरण है। सत्, सत् चित, सत्-चित-आनंद अर्थात सच्चिदानंद की व्याख्या है। इसमें वर्तमान विज्ञान के (अ) पदार्थ (ब) क्वांटम (शक्ति काणिका) (स) वर्चुअल (शक्ति) के उन्नत रूप का विवरण है। ”वह अकंपन-शील, कंपनों का जन्मदाता दूरतम निकटतम भीतरतक बाहरतम, जीव जगत में विद्यमान है। पूर्व मंत्र में इसे ”अनेजत् एकम्“ अर्थात एक स्वरूप से अविचलित कहा है। यह अकंपनशील सूत्रस्य सूत्रम् है इससे कम्पनशील सूत्रों (नियमों) का प्रादुर्भाव होता है। यह हाकिन्स के हर कुछ सिद्धांत का अति उन्नत रूप है।
इससे स्पष्ट है कि अध्यात्म न केवल विज्ञान से आगे की वरन विज्ञान से भी महान सोच, व्यापक सोच रखता है।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)