“ब्रह्म युजित”
सप्रयास मैं तुझ तक पहुंचा, अप्रयास मैं तुझमें डूबा।। टेक।।
दुनियां थी मेरे प्रयास का रास्ता।
दुनियां से फिर रखा ना वास्ता।।
ब्रह्म युजित मैं दुनियां टूटा, अप्रयास मैं तुझमें डूबा।। 1।।
कल की कल-कल कल पे छोड़ी।
आज की पल-पल जिन्दगी जोड़ी।
सतत श्रम है स्वयं ही अजूबा, अप्रयास मैं तुझमें डूबा।। 2।।
कपड़ों के अति भीतर जाकर।
हो गया मैं कपड़ों के बाहर।
तन मन रहित है आत्म अनूठा, अप्रयास मैं तुझमें डूबा।। 3।।