विश्वीकरण, नवीनीकरण, उन्नयनीकरण, उन्मेषीकरण, स्तरीकरण, पर्यावरण, शोधीकरण, शून्य त्रुटि विद्या मानकीकरण, पारदर्शीकरण, कार्य समूहीकरण, विकासीकरण, आदि प्रत्यय का स्वरूप एवं उपयोग दर्शाते हैं । इस संपूर्ण गुणवत्ता प्रत्यय में व्यवसायीकरण के बिक्री, ग्राहक संतुष्टि, यश, लाभ, पुर्ननिवेश, बचत, बचत उपयोग, कार्य संस्कृति, समय अनुशासनादि प्रत्ययों का गहनतापूर्वक समावेश है । संपूर्ण गुणवत्ता के प्रत्यय को अपनाये बिना व्यवसायीकरण के क्षेत्र में कार्य करना अनेकानेक व्यवसाय खतरों को जन्म देता है जिनमें व्यवसाय बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त तथा तहस नहस होकर रह जाता है ।
नागपुर में धरम देव के चम चम जगमग बाजार में दो भाईयों ने समान अवस्था में एक दुकान में आज से बीस वर्ष पहले कार्य आरंभ किया । उनक जीजा विश्व के उद्योग में मुख्य अभियंता हैं। उनकी सलाह मान एक भाई ने विश्वकरण, संगणक करीकरण, गोधीकरण, अपना जापान, इटली जर्मनी निर्मित गुणवता दैनिक उपभोक्ता वस्तुओं से दुकान भर ली । दुकान का आकार, रख रखाव सामान जमाव प्रति तीन माह परिवर्तित किया, दूत निकास मध्यम, धीमा विकास वस्तुओं संगणक द्वारा तालिकाबद्ध किया । आज उसका व्यवसाय तीन दुकानों में फैल गया है । दूसरा भाई सलाह अनुरूप चलने से झिझकता रहा बस वह एक ही दुकान तक सीमित है ।
”संपूर्ण गुणवत्ता“ लागू करने के मानवीय तत्व हैं ।
- सटीक ज्ञान पूर्वक
- श्रृत नियमों उच्च कोटि के नैतिक नियमों के अनुरूप ।
- ऋत नियमों के मशीनी एवं प्राकृतिक नियमों के अनुरूप ।
- श्रृत-ऋत दोनों नियमों के सांमजस्य से उत्पन्न स्थैर्य एवं संतुलन के अनुरूप ।
- तप – द्वन्दों में सम धीरज रखना तप है । चुनौतियों में तटस्थ प्रभावशाली भूमिका तप है । यह संपूर्ण गुणवता का अत्यधिक महत्वपूर्ण तत्व है । दिन-रात, सुख-दुख, मान-अपमान, गर्मी-शीत, हानि-लाभ, उतार-चढाव, मंदी-उठाव में धीरज पूर्वक सम रहते नियोजन, आयोजन नियंत्रण करना तप है ।
- शर्धम व्रातम गणम: शौर्य लक्ष्य एवं समूह ये तीन ही प्रगति के महत्वपूर्ण घटक है । इनके दो दो प्रारूप हैं । आदर्श शौर्य, व्यवहार शौर्य, आदर्श लक्ष्य – व्यवहार लक्ष्य, आदर्श समूह – व्यवहार समूह । इन आदर्श – व्यवहार में न्यूनतम अंतर अधिकतम गुणवता । ये तीनों तत्व अन्य रूप में जान अडेयर के क्रियात्मक नेतृत्व के भी नाम भाग हैं ।
- श्रम विभाजन: श्रम विभाजन की मात्र पांच ही सीढ़ियां हों जिसका नाम है – ज्ञान, शौर्य, संसाधन, शिल्प सेवा । पांच से अधिक स्तरीय श्रम विभाजन से गुणवता, उत्पादकता का स्तरों की संख्या के अनुरूप हृास होता है । पांच स्तरीय श्रम विभाजन हाथ के अंगूठे तर्जनी, बड़ी उंगली, अनामिका, कनिष्का के अनुरूप हैं ।
- पंचीकरण: विशेषता के कारण समन्यात्मक गुणवता हृास का बचाव करती पंचीकरण सिद्धांत यह सिद्धांत कहा जा सकता है । यह श्रम विभाजन का पूरक सिद्धांत है । इसके अनुसार दक्षों में पचास प्रतिशत मूल भाग ज्ञान दक्षता का तथा साढ़े बारह साढे बारह प्रतिशत भाग शौर्य, संसाधन, शिल्प, सेवा – दक्षता का होना चाहिए । समन्वयात्मक गुणवत्ता के लिए यह अत्यधिक उपयोगी तत्व है ।
- दशरूपकम कामूआत: कार्य मूल्यांकन आंकलन तकनीक के दस रूपों को दशरूपकम कामूआत कहते हैं । किसी भी कार्य को गुणवत्ता पूर्वक कम समय में सम्पन्न करने के लिए दशरूपकम सर्वोत्तम टूल है । इसमें कार्य विभाजन संधियों, प्रकृतियों अवस्थाओं के अनुरूप करके भविष्य के कार्यों का प्रहरी तथा पताका में विभाजन किया जाता है कार्य सम्पन्नता पर गुणवत्ता का आधार दशरूपकम कामूआत है ।
- प्रशांत, ललित, उद्वत नेतृत्व प्रयोग: हर कार्य में ठंडा गरम के स्थान पर नेता को प्रशांत, ललित, उद्वात, ललित प्रशांत भूमि यत्न, आरंभ प्राप्ताशा, नियतादि, ओर फलायम अवस्थाओं का प्रयोग करना चाहिए । परिवर्तित नेतृत्व भूमि का मानव गुणवता में में अद्वितीय उफान देते हैं ।
- संस्कार: हीनागपूर्ति, मलयापन, अतिशयाधान संस्कार के तीन उद्देश्य हैं । तीनों प्रक्रिया में शून्य त्रुटि से जुडत्रे हैं । निश्चित समय हीनांगपूर्ति मलयापन, अतिशयाधान शून्य त्रुटि के साथ उत्पादकता वृद्धि दायक है ।
- अघमर्षण: अध कहते हैं विशेष या त्रुटि या मल या अवशेष को और इन सबको कम से कम करते जाने को कहते हैं अधमर्षण । ये सब अधो यदि कच्चे माल से ग्राहक के हाथ पहुंचते शून्य कर दिये जायें गुणवत्ता अधिकतम होती है । इकट्ठे इस प्रकार गुणवत्ता के संपूर्ण प्रतय के व्यवहारिक पालन का हर तत्व अघमर्षण, संस्कार, पंचीकरण, दशरूपकम आदि उद्योग के व्यवसायीकरण का भी संपूर्ण मान देेते हैं । संपूर्ण गुणवत्ता बिना व्यवसायीकरण असंभव है ।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)