संगठन…

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जहां वर्ण चार वहां आज तो अपार भये।

हिंदु-हिन्दुत्व में भेद-भाव को बढायो है।।

आपस की फूट चली छूट मारकूट चली।

विधर्मी की लूट चली गांठ को गंवायो है।।

आर्यत्व की एकता में आई है जुदाई ऐसी।

क्षीणता में क्षय को असाध्य रोग आयो है।।

काराणी कहत वाको महर्षि ने पायो भेद।

अभेद को सूत्र संगठन सिखलायो है।।१६।।

~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई

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