बड़े-बड़े पडे वहां शूद्रन की कथा कौन।
शूद्र पे समुद्र दुःख दर्द को छवायो है।।
धर्म भयो छुआछूत शूद्र भयो है अछूत।
धर्म की आड में भूत धर्म हु को आयो है।।
काराणी कहत सारे हिन्दवे समाज बीच।
शूद्रन ने अंश एक प्रेम को न पायो है।।
नहीं नेक टेक एक वर्ण में विवेक रेख।
देख देख दिल दयानन्द को दुखायो है।।१४।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई