खुले रखे द्वार धर्म छोड़ जानेवाले काज।
आनेवाले काज दोष दीनो है अशुद्धि को।।
अति मतिमन्द अंध धर्म अधिकारी भये।
कुबुद्धि के धारी भये बेच मारी बुद्धि को।।
ज्ञानी बन ज्ञान के घमण्ड में गंवाय दीनो।
काराणी कहत सारे देश की समृद्धि को।।
ऐसी विपरीत आर्यावर्त की विपत देख।
स्वामीजी ने सत्य समझाय दीनो शुद्धि को।।१७।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई