व्यक्त की आभा इतनी सुन्दर…

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“खुद का अव्यक्त”

व्यक्त की आभा इतनी सुन्दर।
अव्यक्त तो होगा ही सुन्दरतम।।
अपने आप के अव्यक्त को समझ ले।
विभूतिमय है वो है दिव्यतम।। टेक।।

खुद को पढ़ लो, खुद को समझ लो।
खुद जग का आधार।।
खुद से ही ब्रह्म जगत जुड़ा है।
जग खुद का व्यापार।।
जग की आभा इतनी सुन्दर।
ब्रह्म आभा होगी ही सुन्दरतम।। 1।।

सत रज तम गुण खेल है दुनियां।
स्वयं वृक्ष है बेल है दुनियां।।
परम मौन परब्रह्म है गुनिया।
मौन अव्यक्त का कोई ना सुनिया।।
वाक् की आभा इतनी सुन्दर।
मौन तो होगा ही सुन्दरतम।। 2।।

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