ब्राह्मण क्षत्रिय शूद्र वर्ण को आधार वही।
वैश्य वर्ण मरण के चरण तक आयो है।।
वैश्य ने विसार दियो वैश्य धर्म को विचार।
वाको धर्म कर्म सब स्वार्थ में समायो है।।
कपटी कुटिल भयो जीवन जटिल भयो।
एक रक्त शोषण के रंग में रंगायो है।।
नहीं नेक टेक एक वर्ण में विवेक रेख।
देख देख दिल दयानन्द को दुखायो है।।१३।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई