इन्द्र ब्रह्म- सर्वगुण आभार शुभ ही शुभ ।
त्रातारम् इन्द्र- शुभ ही शुभ पालन-लालन है जिसके,
अवितारम् इन्द्र- बोध, प्रतिबोध, अस्वप्न, अद्रवता, जागृति, इन्द्रिय चैतन्यता (चेतन अवचेतन स्वस्थता) – उत्तम सुरक्षा से भी बेहतर सुरक्षक है जो वह अवितराम्।
हवे हवे सुहवम्- जब-जब आहूत करना चाहें, जब-जब भी चाहें, हर पल भी चाहें; तब-तब सुआहूत- इन्द्रियों द्वारा अस्तित्व वेदों में सतत ब्रह्म आहूति- हम बनें ब्रह्म डाल- हर पल ब्रह्म डाल।
शूरम् इन्द्रम्- शुभ ही शुभ, शौर्य है जिसका।
शक्रम्- शुभ ही शुभ, शक्ति आभार हैं।
पुरुहूतम्- अष्टाचक्र नव द्वार पुर अयोध्या में हर पल आहूत, अस्तित्व जीवात्मा अग्नि यज्ञ में ब्रह्म ही आहूति है। ब्रडा = ब्रह्म-डाल हुए हम- ब्रह्म आभरें।
इन्द्रम् हुवे- सर्वगुण शुभ ही शुभ, ओतः प्रोत होकर दैवी भाव गुण कर्म से, जीवन छलकाते ब्रह्म निकाल हुए हम।
मघवा इन्द्र- अनन्त धन- शुभ-शुभ एैश्वर्य आभर।
हविः – आत्म हविष्।
नु-वेति- अनिमिषन्त- पलांश से भी शीघ्रातिशीघ्र अंगीकार करें। (संदर्भ सामवेद 333)
आँख में कचरा पड़ जाने पर आँख से सफेद रंग की कीच निकलती है उसे गिग्ग कहते हैं। गिग्गो (कडामकनि) कम्पयूटर सिलिकान घाटी जो कार्बन घाटी होने जा रही है। फिर जैव मस्तिष्क कोशिका घाटी होगी, का सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त का विस्तार नाम है ‘गारबेज इन ग्रेट गारबेज आउट’। खुशवन्त सिंह तरह के लेखक इस कचरा डाल महा कचरा निकाल सिद्धान्त की ही उपज हैं। चौरासियायें (सठियाने से घातक विक्षिप्त) खुशवन्त सिंह को ”औरतों के संग“(कंपनी ऑफ वुमेन) उसके कचरा डाल महा कचरा निकाल होने का पूरा प्रमाण है।
आज का युग सूचना विस्फोट युग है। कम्पयूटर, टी.वी., समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तकें, खोजें, आंकड़े सब की भरमार सूचना-युग की द्योतक हैं। तनिक वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाये तो हम पाते हैं कि यह सब आर्थिक औद्योगिक मनुष्य के दिमाग का कमाल है। यह आदमी बड़ा ही सुविधा भोगी है। सूचना विस्फोट का इसका उद्देश्य मात्र पैसा है। सूचना भंडारों में इसीलिए चालू मालों की भरमार है या मारम्मार है कि इनसे पैसा झरता है।
हम दूरदर्शन के सीरियलों को लें या फिल्मों को लें। सभी को (एकाध अपवाद छोड़) न तो रिश्ते नातों की, न किसी सभ्यता की, न किसी संस्कृति की, न किसी विचारधारा विशिष्ट की कोई समझ है, न गहनता है। डिस्कव्हरी जैसा शुद्ध चैनल भी मौका मिलते ही निदेशक पशु पक्षी, नेवला सांप आदि के सेक्स के लम्बे चित्रणों से अनावश्यक गंदला करना नहीं भूलते हैं। सारे सूचना भंडार में से पच्यानवे प्रतिशत के करीब जीवन के लिए बेकार है। भीड़ को मात्र दिखाने के लिए परोसा जा रहा आवेग है। मोटी भाषा में सब ”गारबेज इन“है, जो समय-समय पर पति-पत्नी झगड़ों, बच्चों की अनुशानहीनता, असभ्य, अश्लील हाव-भावों, छिछली बातों के रूप में गली, चौराहे, रेल, बस, सड़क, घर में आम रूप से प्रदर्शित होने जा रहा है। कचरा निकल रहा है। समाज में फैल रहा है। ”कचरा डाल“होगा तो ”कचरा निकाल“भी होना पड़ेगा। शरीर, उसकी इन्द्रियाँ सप्त ऋषि आंतरिक अस्तित्व कोई कूड़ा दान या कचराघर तो नहीं; कि इसमें बाह्य का कचरा भर के डाल दिया और जब चाहा कचरा निकाल दिया। इस सीमा तक का कड़ाकनि (कचरा डाल, कचरा निकाल) कि एक लड़की, युवा लड़की को मादर……. की गाली दे, और सब चुपचाप रहें। मैंने मात्र कहा, ”बोलने से पहले कब, कहां, किससे सोचना चाहिए“गंदला मुख किस झाड़ू से साफ होगा ?
क्या सूचना विस्फोट को कचरे से बचाया जा सकता है ? क्या कचरे के स्थान पर शुभ ही शुभ नहीं भरा जा सकता ? क्या शुभ के बारे में निरर्थ बकवास तर्क कि सोचने से ही शुभ अस्तित्व है या अशुभ का अस्तित्व है, समाप्त नहीं किया जा सकता है ?
कडाकनि का उलट सिद्धान्त है ब्रडाब्रनि। यह भी गीगो है, गाड इन गाड आउट या ब्रह्म डाल, ब्रह्म निकाल, कम्प्यूटर सूचना विस्फोट को यह सिद्धान्त ज्ञात नहीं है, पर उसे इसकी आवश्यकता सबसे अधिक है।
चारों वेदों में उपलब्ध एक वेद मंत्र इस प्रकार है त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रं हवे हवे सुहवं शूरमिन्द्रम्। ह्नयामि शक्रं पुरूहुतमिन्द्रं स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः।।
इसका अर्थ इस प्रकार है- सर्वगुण आगार ब्रह्म मात्र शुभ ही शुभ है। ब्रह्म गुण आभर लालन पालन, स्वस्थता, सुरक्षा, आभर हम शुभ ही शुभ हों। इन्द्रियों (कर्म एवं ज्ञान) से अस्तित्व में ब्रह्म ही ब्रह्म का हर पल, हर क्षण आधान करें, शुभ ही शुभ शौर्य शक्ति का आधान करें, अष्ट चक्र, नवद्वार मय अयोध्या शरीर में ब्रह्म भरें। अनन्त ऐश्वर्य ब्रह्म धन भरें। ब्रह्म भरे लबालब छलकते हम ब्रह्म बिखरें। हमारी आत्म समिधा शीघ्र ही ब्रह्म अंगीकार करें।
यह अध्यात्म अर्थ उच्च कोटि के प्रबंधन के रूप में भी लिया जा सकता है।
इन्द्र- शुभ ही शुभ, आभर प्रबंधक।
त्रातारम् इन्द्र- उपयुक्त शुभ ही शुभ लालन पालन व्यवस्था कार्मिकों को करने वाला प्रबंधक, कार्मिकों के न्यायोचित हितों की देखभाल कर्ता।
अवितारम् इन्द्र- वह प्रबंधक जो हर कार्मिक से प्रशिक्षण द्वारा बोधमय प्रतिबोधमय, अस्वप्नावस्था युक्त, अद्रवतायुक्त, जागृतिपूर्ण, स्वस्थ इन्द्रिय युक्त षट पूर्ण सुरक्षित कार्य करवाता है, तथा करता है।
हवे हवे सुवहम्- पल प्रति पल कर्मरत, शुभ ही शुभ आपूर्त कार्मिक को करना, स्वयं भी सुहवम् होना।
शूरम् इन्द्रम्- शुद्ध सात्विक शौर्य- साहसपूर्वक हर कार्य चुनौती का मुकाबला।
शक्रम्- ज्योतित शक्ति का नाम शक्र है। इसमें एक उर्ध्वगति का भी समावेश है। नियमों का नाम ज्योति है। क्वांटम सूक्ष्म नियमबद्ध शक्रम् है। हर कार्मिक को शक्रम् करना ब्रडाबनि का एक तत्व है।
पुरुहूतम्- कार्य लक्ष्य को समर्पण भाव से सब कुछ भूल कर प्राप्त करने की भावना पुरुहूतम् है। कार्यक्षेत्र में कार्यलक्ष्य पूर्ति के लिए सर्व व्यापक होना पूरुहूतम् प्रक्रिया है। समूह का कार्य समूह बन जाना पुरहूतम् है। लक्ष्य का पुर में आहूत होना पुरुहूतम् है। उच्च कार्यव्यवस्था है यह।
इन्द्रम् हुवे- कार्य लक्ष्य सिद्धि पश्चात उसकी सुगंधि का विस्तरण। नेक नामी- ग्राहक संतुष्टि, ग्राहक संतुष्टि का आध्ाार हम ही हैं।
मघवा इन्द्र- कार्य पूर्ति पर न्यायोचित कर पूर्ण समृद्धि लाभ आभर हम।
हविः – कौशल अभिवृद्धि – हम अधिक कुशल।
नु वेति- शीघ्रातिशीघ्र नये कार्य का कौशल पूर्वक प्रारंभ।
कार्य लक्ष्य को नियम, आनंद, समृद्धि के साथ प्राप्त करना ब्रडाबनि प्रबंधन है। इसमें प्रबंधक, अधिकारी, कार्मिक एक ही स्वर, लय, लगन से कार्य करते हैं।
स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)