विष्णु गणेश पिंगले

0
219

१८८८ में महाराष्ट्र के पुणे जनपद में जनपद में जन्मे अमर क्रांतिकारी विष्णु गणेश पिंगले ९ भाई बहनों में सबसे छोटे एवं सभी के दुलारे थे| विद्यालयी जीवन में ही वे राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रभाव में आ गए और स्वतंत्र्य वीर सावरकर के साथ बढ़ चढ़ कर इनमे भाग लिया| इस समय पर पढ़े प्रभाव ने पिंगले पर अमिट छाप छोड़ी और बाद में जब वे मुंबई गए तो अनेकों राष्ट्रवादियों से उनका परिचय हुआ और यहीं उन्होंने विस्फोटकों पर काम करना सीखा| चूँकि उनकी इच्छा इंजीनियर बनाने की थी अतः इस उद्देश्य से वे अमेरिका गए और १९१२ में वाशिंगटन यूनिवर्सटी में मेकैनिकल इंजीनियर की पढाई के लिए प्रवेश लिया| शीघ्र ही वे ग़दर पार्टी के संपर्क में आ गए और उसके सक्रिय सदस्यों में गिने जाने लगे| प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों को फँसा देख इस स्थिति का लाभ उठाने के लिए ग़दर पार्टी ने भारत के क्रांतिकारियों से संपर्क कर विदेश सत्ता को उखाड़ फेंकने हेतु योजना पर काम करना शुरू किया और इस हेतु ग़दर पार्टी के कई वरिष्ठ लोग जिनमें करतार सिंह सराबा, पिंगले, सत्येन सेन आदि शामिल हैं, १९१४ में कलकत्ता पहुंचे| पिंगले प्रमुख क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से बनारस में मिले और उनके साथ आगे की योजना पर चर्चा की| इस दौरान पिंगले ने यू.पी. एवं पंजाब में घनघोर काम किया और और कई अन्य साथियों के साथ मिलकर सशस्त्र विद्रोह का पूरा खाका तैयार किया जिसमें भारतीय सैनिकों के भी शामिल होने की पूरी आशा एवं तैय्यारी थी| पर दुर्भाग्य, ब्रिटिश पुलिस का एक भारतीय सिपाही इस पूरे दौर में क्रांतिकारी के रूप में खुद को प्रदर्शित करता हुआ, सारे घटनाक्रम का गवाह रहा और जब ये योजना पूरे परवान पर थी, उसकी मदद से सरकार ने इस पूरे आन्दोलन का शुरू होने से पहले ही कुचल डाला| अधिकांश प्रमुख नेता पकड़े गए परन्तु सराबा और पिंगले जैसे रण बांकुरों ने अंतिम दम तक हार ना मानने की भारतीय परंपरा का निर्वाह करते हुए मेरठ छावनी में विद्रोह भड़काने का प्रयास किया| इस प्रयास में भी असफल पिंगले मेरठ में पुलिस के हाथ पड़ गए और सराबा लाहौर पुलिस के हाथ| अन्य कई साथियों के साथ पिंगले पर भी लाहौर षड़यंत्र केस के नाम से अप्रैल १९१५ में मुकदमा चलाया गया और जैसा कि सबको पता था कि क्या होना है, १६ नवम्बर १९१५ को उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गयी और इस तरह माँ भारती की कोख से जन्मा उसका ये वीर पुत्र माँ की गोद में ही सो गया| महान हुतात्मा को कोटिशः नमन|

~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here