वास्तविक गुरु के लक्षण
- वेद और वेदानुकूल ऋषिकृत ग्रन्थों के पठन-पाठन को मुक्ति का साधन माननेवाला हो।
- सत्यमानी, सत्यवादी, सत्यकारी हो।
- पुत्रैषणा, वित्तैषणा और लोकैषणा का त्यागी हो।
- ईश्वर, जीव और प्रकृति को पृथक्-पृथक् माननेवाला हो।
- स्वयं अष्टांग योग का अनुष्ठान करनेवाला हो।
- सकाम कर्मों को छोड़ निष्काम कर्म करनेवाला हो।
- अपनी उन्नति के तुल्य प्राणिमात्र की उन्नति चाहनेवाला हो।
- पक्षपातरहित न्यायकारी हो।
- मद्यमांसादि अभक्ष्य खान-पान करनेवाला न हो।
- मोक्ष की प्राप्ति करने-करवाने को मानव जीवन का मुख्य लक्ष्य माननेवाला हो।
- वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि ग्रन्थों में वर्णित योग विद्या का प्रचार-पसार करनेवाला हो इत्यादि। किसी व्यक्ति में लम्बे काल तक इन गुणों का परीक्षण करते हुए यदि उस व्यक्ति में उपर्युक्त गुण उपलब्ध हों, तभी उसे गुरु बनाना चाहिए।
साभार योगदर्शनम्- स्वामी सत्यपति परिव्राजक