वराहमिहिर

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वराहमिहिर का जन्म मध्यप्रदेश के उज्जयिनी नामक नगर में हुआ था। आपका जन्मकाल सन् 499 अर्थात् वि.सं. 556 के आस-पास होने का अनुमान किया जाता है। आपके पिता आदित्यदास तथा माता सत्यवती थीं। सम्राट विक्रमादित्य आपके ज्योतिष् ज्ञान से अत्यन्त प्रभावित थे। यही कारण है सम्राट ने अपने दरबार में नवरत्नों में उन्हें स्थान दिया था। इनके अलावा विक्रमादित्य के नवरत्नों में कालिदास, वैतालभट्ट, धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, घरखर्पक, वररुचि एवं शंकु थे।

वराहमिहिर महान् गणितज्ञ आर्यभट्ट के समकालीन उनसे 24 वर्ष छोटे थे। आपने ज्योतिष के क्षेत्र में अनेक नए शोध किए। आपने ज्यातिष् के अनेक ग्रन्थों की रचना भी की थी। आपका प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘पंचसिद्धान्त’ है। ज्योतिष विषय के इस ग्रन्थ में वराहमिहिर ने ज्योतिष् के प्राचीन सिद्धान्तों के महत्त्व के साथ-साथ नए शोध विषय भी प्रतिपादित किए हैं। 562 वि.सं. अर्थात् सन 505 में इस ग्रन्थ की रचना हुई होगी ऐसा माना जाता है।

वराहमिहिर ज्योतिष् के साथ-साथ खगोलविज्ञान के भी विद्वान् थे। इस शास्त्र को आज-कल ‘एस्ट्रोनोमी’ कहा जाता है। पंचसिद्धान्त के प्रथम भाग में खगोल विज्ञान पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

वराहमिहिर ने सर्वप्रथम प्रतिपादित किया था कि पृथ्वी का आकार गोल है। वराहमिहिर के समय में भारत और यूनान के बीच में घनिष्ठ मैत्री थी। यूनान के लोग विज्ञान में बहुत ही प्रगति कर रहे थे। क्योंकि वराहमिहिर जिज्ञासु और अभ्यासशील थे इसलिए उन्होने यूनानी संस्कृति तथा ज्योतिष् का गहराई से अध्ययन किया। आप यूनानी विद्वानों के विषय में लिखते हैं- ”यूनानी लोग आदरपात्र हैं, कारण कि वे हम सबसे आगे हैं और विज्ञान में बहुत ही आगे हैं।“

पंचसिद्धान्त के अलावा भी आपके दो महत्वपूर्ण ग्रन्थ ‘बृहद् जातक’ तथा ‘बृहत् संहिता’ हैं। इन ग्रन्थों में भौतिकशास्त्र, भूगोल, नक्षत्रविद्या, वनस्पतिविज्ञान, प्राणिशास्त्र आदि के साथ-साथ तात्कालीन सामाजिक, राजनैतिक परिस्थितियों का वर्णन भी मिलता है। इन ग्रन्थों द्वारा हमें प्राचीन भारत के वैज्ञानिक शोधों के विषय में जानने को मिलता है।

वराहमिहिर का वनस्पतिशाó पर भी अद्भुत प्रभुत्व था। आपने पौधों पर होनेवाले रोगों और उनकी रोकथाम के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा कार्य किया है। गुप्त काल के इन ज्योतिषियों (वराहमिहिर, आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त) ने यह जान लिया था कि ग्रह उपग्रह आदि ऩक्षत्रों से परावर्तित प्रकाश से चमकते हैं। इतना ही नहीं पृथ्वी की अपनी ध्ाुरी पर घूमने की दैनिक गति को भी ये जानते थे।

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