4 सितम्बर का दिन, सन 1930 में चटगाँव शस्त्रागार पर हमला करके अंग्रेजों को नाकों चने चबवा देने वाले क्रातिकारियों में से एक और इस हमले की अगुआई कर रहे मास्टर सूर्य सेन के साथी लोकनाथ बल का निर्वाण दिवस है| वर्तमान बांग्लादेश के चटगाँव जिले के धोरिया नामक गाँव में प्राणकृष्ण बल के घर 8 मार्च 1908 को जन्में लोकनाथ प्रारम्भ से ही माँ भारती को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के स्वप्न देखने लगे थे| अपने इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने स्वयं को सशस्त्र क्रान्ति की राह में झोंक दिया|
18 अप्रैल 1930 को उनके नेतृत्व में क्रांतिकारियों के एक समूह ने उस आक्जलरी फ़ोर्स ऑफ़ इंडिया (AFI) के शस्त्रागार पर कब्ज़ा कर लिया, जो ब्रिटिश फ़ौज के अंतर्गत एक स्वैच्छिक और पार्ट टाइम फ़ोर्स थी| 22 अप्रैल को उनके ही नेतृत्व में ब्रिटिश फ़ौज और पुलिस के संयुक्त दल से क्रान्तिकारियों से सीधा मोर्चा लिया| इस भिडंत में लोकनाथ के छोटे भाई हरगोपाल बल सहित 12 क्रान्तिकारी माँ की बलिवेदी पर शहीद हो गए| लोकनाथ बच निकले और फ़्रांस के कब्जे वाले चन्द्रनगर पहुँच गए|
बाद में 1 सितम्बर 1930 को वो ब्रिटिश पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में पकडे गए और उन पर मुकदमा चलाया गया| 1 मार्च 1932 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गयी और सेल्युलर जेल भेज दिया गया, जहाँ से वो 1946 में स्वतंत्र हुए| मुक्ति के बाद वो महेन्द्रनाथ राय की रैडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी में शामिल हो गए|
बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए और आज़ादी के बाद 1 मई 1952 से 19 जुलाई 1962 तक कलकत्ता कारपोरेशन के सैकेंड डिप्टी कमिश्नर रहे| 20 जुलाई 1962 को उन्हें प्रोन्नत कर फर्स्ट डिप्टी कमिश्नर बनाया गया जिस पद पर वह 4 सितम्बर 1964 तक रहे, जब उनकी मृत्यु हो गयी| उनके निर्वाण दिवस पर कोटिशः नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि|