यदि जीवन से लबालब भरे जीवन्त साधक को अचानक निर्णायक मण्डल से प्रतिभागियों के ही अनुरोध पर सिर्फ दो मिनट”प्रतियागिता में प्रतियोगी के रूप में भाग लेने को कहा जाए और उसे बोलने का अप्रत्याशित, तात्कालिक जो विषय दिया जाए वह हो ‘‘तुम कैसे मरना चाहोगे?’’ तो क्या होगा?
एक- उसे प्रथम पुरस्कार मिलेगा। दो- उसे प्रथम पुरस्कार में पेन मिलेगा। तीन- उसे पहले ही किसी ने डायरी दे रखी होगी। चार- वह डायरी को पेन से भरेगा। पांच- वह छोटा फैशनेबल पेन मृत्यु को प्राप्त होगा। छै- दूसरे के दान प्रदत्त पेन से लेखन पूरा होगा। और सात- इस प्रकार डायरी भरने का विषय होगा ‘मृत्यु’। यह संयोग मेरे साथ हुआ। अरुणभाई के हाथ ‘मृत्यु’ मेरे हाथ लिखी डायरी रूप में लगी।
आज ‘मृत्यु’ आपके हाथ में है।
डॉ. त्रिलोकीनाथ क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)