द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।। 18।। (यजु.36/17)
मिले शान्ति वह प्रभुवर हमको।। टेक।।
जो रवि किरणों में मुस्काए। अन्तरिक्ष को जो महकाए।
वसुधा पर सौरभ बन छाए। व्यापक रह जल के स्रोतों में।
करें सुखी जीवन भर हमको।। 1।।
श्यामल श्यामल वन उपवन में। विविध अन्न फल पत्र सुमन ये
जीव जगत के अवलम्बन ये। रहें निरापद करें समर्पित।
चषक शान्ति के भर भर हमको।। 2।।
सुखद शक्तियां भौतिक सारी। विद्वद्वृन्द न मिथ्याचारी।
रोपें नहीं अनय की क्यारी। ताप शाप से मुक्त सर्वथा।
स्वस्ति शान्ति का वर दो हमको।। 3।।
सब अपना कर्तव्य निबाहें। मुक्त ज्ञान की हों सब राहें।
सब सबकी ही उन्नति चाहें। रहे शान्ति ही शान्ति सर्वतः।
प्रभु इतना मृदु करदो हमको।। 4।।