महावीर कोठा

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12 फरवरी रौबदार, दिलेर, राष्ट्रभक्त और अद्भुत संगठन क्षमता वाले उन क्रांतिकारी महावीर कोठा का बलिदान दिवस है जो सिकन्दर बेगम भोपाल के पति नजर मोहम्मद खाँ (१७९१-१८१९) और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच हुए एक समझौते के अन्तर्गत गठित की गई सीहोर कन्टिजेंट में एक प्रभावी हवलदार थे। १८४८ से भोपाल की एक फौज को सीहोर में अंग्रेजी फौजों द्वारा फौजी प्रशिक्षण दिया जा रहा था और इसी फौज को सीहोर कन्टिनजेंट कहते थे, जिसका पूरा खर्च रियासत भोपाल उठाती थी। १० मई को मेरठ की क्रांति और दिल्ली पर भारतीयों का कब्जा होने के बाद पूरे देश में क्रांति की ज्वाला भडक़ रही थी। ८ जून १८५७ को नीमच की कन्टिनजेंट ने बगावत की जो शीघ्र ही महिदपुर, नसीराबाद, महू, मंदसौर और इन्दौर में भी फैल गई। इन्दौर होल्कर की बागी फौज ने १ जुलाई १८५७ की सुबह इन्दौर की छावनी में रेजीडेंसी की इमारतों पर हमला कर दिया जहाँ उस समय माहिदपुर और सीहोर कन्टिनजेंट की ३-४ कम्पनियाँ अंग्रेजों की सुरक्षा के लिये तैनात थीं। सीहोर के इन्ही सैनिकों में महावीर कोठा भी शामिल थे जो अंग्रेजों के खुले विरोधी थे। जैसे ही इन्दौर में अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिकों ने युद्ध छेड़ा महावीर कोठा भी इसमें सम्मिलित हो गये और अंग्रेजों की सुरक्षा में लगे सीहोर के सिपाहियों को उन्होने यह बात समझाई कि हमें अंग्रेजों की सुरक्षा नहीं करनी चाहिए और हमें वापस सीहोर चलकर अंग्रेजों को मार भगाना चाहिए ताकि इन्दौर से लेकर सीहोर तक अंग्रेजों को कहीं रहने की जगह नहीं मिल सके। महावीर कोठा के इस आव्हान पर कई सिपाही उनके साथ हो गये और वहाँ इन्दौर में उन्होने अंग्रेजों की सुरक्षा करने की बजाये उन्हे मारना शुरु कर दिया। इधर महावीर कोठा के साथ करीब १४ सिपाही इन्दौर छोडक़र आसपास के क्षेत्रों में क्रांति का प्रचार-प्रसार करते हुए सीहोर की और रवाना हो गये और ७ जुलाई १८५७ को सीहोर आ गये। बिना किसी सरकारी अनुमति के महावीर कोठा के नेतृत्व में सीहोर आये इन क्रांतिकारियों ने सीहोर आते ही सीहोर की फौज में बगावत पैदा कर दी और ये इतनी तेजी से फैली कि ८ और ९ जुलाई तक तो सीहोर के सैनिकों में अंग्रेजों को मार देने की योजना की तैयार हो गई । लगभग पूरे सैनिक अंग्रेजों के खिलाफ हो चुके थे और मात्र २ दिन में जिस तेजी से महावीर ने सीहोर के सैनिकों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया था उससे लगता है कि सैनिकों में उनका प्रभाव बहुत अधिक था।

महावीर ने सीहोर के सिपाहियों को एकत्र कर खुले रुप से कहा कि पूरे देश में अंग्रेजों को भारत से निकाला जा रहा है, दिल्ली में बहादुर शाह जफर का शासन कायम हो चुका है, चारों तरफ से अंग्रेज भाग रहे हैं, इन्दौर में किस प्रकार अंग्रेजों को मारकर भगाया गया है उसका वृतांत सुनाते हुए महावीर ने सीहोर के सैनिकों को कहा कि यदि आप साथ हो जायें तो सीहोर से भी अंग्रेजों को भगाया जा सकता है। उन्होने कहा कि सिपाहियों अब समय आ गया है जब हमें भी अंग्रेजों को खदेडक़र भारतदेश से बाहर निकाल देना चाहिये। महावीर के इस आव्हान पर सीहोर की फौज में भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत हो गयी और इसलिये ही सीहोर क्रांति के जनक के रुप में महावीर कोठा को याद किया जाता है और हमेशा याद किया जाता रहेगा। सीहोर के फौजी क्रांतिकारी महावीर कोठ के साथ सम्मिलित होते जा रहे थे। सिकन्दर बेगम ने इसकी रोकथाम और १४ सिपाहियों पर कार्यवाही करने के लिये निर्देश दिये जिस पर उनके वफादार वख्शी मुरव्वत मोहम्मद खाँ ने सीहोर में एक आर्मी कमेटी स्थापित की थी। इस कमेटी ने सिपाहियों द्वारा आदेशों का पालन न करने, लापरवाही और देर से उपस्थिति आदि के कई प्रकरण पंजीबद्ध किये और सिपाहियों के विरुद्ध निलंबन, निष्कासन और जबरी त्यागपत्र के आदेश जारी किये। बगावत फैलने के डर से फ़ौज में अत्यंत लोकप्रिय हवलदार महावीर कोठ और रमजूलाल सूबेदार को छोड़कर इस कमेटी ने शेष १२ को सेवा से पृथक करने और सीहोर की सीमा से बाहर जाने का भी आदेश दे दिया । इधर महावीर कोठा द्वारा लगातार देशभक्ति की भावना भडक़ाने तथा बगावत पैदा करने की जानकारी भोपाल बेगम को मिल रही थी पर महावीर के साथ प्रबल समर्थन के कारण वो कुछ कर नहीं पा रही थी।

देशभक्ति की भावना जगाने वाले सिपाही महावीर कोठा के क्रांतिकारी विचारों की चिंगारी सीहोर फौज के करीब एक हजार से अधिक सैनिकों में राष्ट्रभक्ति की भावना को बढ़ा रही थी और राष्ट्रभक्त महावीर कोठा धीरे-धीरे सीहोर फौज के अघोषित सैनानायक के रुप में उभर रहे थे। उनकी संगठन शक्ति का लोहा सब मानने लगे थे और उनके इशारे पर जान लेने और देने को तैयार बैठे थे। इसी समय बैरसिया में सुजाअत खाँ के कब्जे को समाप्त करने के लिये सिकन्दर जहाँ बेगम ने सीहोर कन्टिनजेंट बैरसिया पर तत्काल हमला करने का आदेश दिया लेकिन महावीर कोठ ने आदेश देने आये दूत को खुले रुप से कह दिया कि हम बेगम का यह आदेश नहीं मानेंगे, जिससे बेगम अवाक रह गई। बेगम और भोपाल सरकार वखूवी समझ रहे थे कि महावीर का इंकार पूरी फौज का इंकार है और एक तरह से यह खुली बगावत भी है पर वो कोई कार्यवाही करने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे। १ अगस्त १८५७ को बेगम के वफादार वख्शी मुरव्वत मोहम्मद खां ने छावनी के सैनिकों की उपस्थिति ली और उन्हें एक नए किस्म के कारतूस दिए जिनके बारे में सिपाहियों को शक हुआ की ये चर्बी वाले कारतूस हैं। हालांकि घबरा कर वो कारतूस वापस ले लिए गए पर अंग्रेजों की धर्म विरोधी नीति से अंग्रेजों के प्रति सैनिकों में गुस्से की आग भडक़ गयी। कुछ सैनिकों ने तो गुस्से में अंग्रेज अफसरों के खाली पड़े मकानों में आग लगा दी। २ अगस्त १८५७ को सैनिक छावनी के सर्जन के बंगले में आग लगा दी जिसमें उस सर्जन ने बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचा पायी।

घटना से डर कर बेगम ने इन कारतूसों की जांच का आदेश दिया ही था कि ये खबर फ़ैल गयी कि सिपाहियों को दी जाने वाली शकर में गाय और सुअर की हड्डियों की मिलावट की गयी है, जो जांच में सिद्ध भी हो गया। इस घटना के बाद राष्ट्र की रक्षा के लिये सैनिक का कार्य करने वाले सिपाहियों को यह लगने लगा कि यहाँ तो हमारा ही धर्म सुरक्षित नहीं है। अंग्रेजों ने तो हमारा धर्म नष्ट करने का प्रयास किया ही है बल्कि बेगम भी उनका साथ दे रही है। भयंकर आक्रोश से भरे सैनिकों ने एक बैठक की जिसमें रिसालदार वली शाह ने ओजस्वी भाषण देकर क्रान्ति की भावनाओं को शिखर तक पहुंचा दिया और यह तय किया गया कि अब बेगम सरकार का आदेश ना मान कर अपनी सरकार बनायी जायेगी जिसे सिपाही बहादुर सरकार कहा जायेगा। क्रांति के अग्रदूत महावीर कोठा यह भलीभांति जानते थे कि भोपाल रियासत में यदि क्रांति हुई तो यहाँ सबसे बड़ी समस्या हिन्दु-मुस्लिम विवाद रहेगा। इसलिये यहाँ उपस्थित क्रांतिकारियों के सामने यह तय कर दिया गया कि सरकार को दर्शाने के लिये दो झण्डे लगाये जायेंगे। इनमें से एक झण्डा निशाने महावीरी कहलायेगा जिसका रंग भगवा रहेगा और दूसरा झण्डा निशाने मोहम्मदी कहलायेगा जिसका रंग हरा रहेगा। दोनो झण्डे हिन्दु-मुस्लिम एकता के प्रतीक रहेंगे और इनको एक-दूसरे से मिलाकर लगाया जायेगा। इस निर्णय के तत्काल बाद सीहोर कन्टिनजेंट में लगा अंग्रेजों का झण्डा उतार कर जला दिया गया और इसके स्थान पर निशाने महावीरी और निशाने मोहम्मदी लगा दिये गये। इसके साथ ही हर-हर महादेव और अल्लाहू अकबर के नारे भी बुलंदी के साथ लगाये गये। इस दिन सैनिकों में गजब का उत्साह रहा था, उनका जोश देखते ही बन रहा था।

सीहोर में क्रांतिकारियों की ताकत हर दिन बढ़ती जा रही थी। बल्कि इनके कारण आसपास के क्षेत्रों में भी क्रांति की लहर पैदा हो रही थी। सिपाही बहादुर सरकार की असली ताकत महावीर कोठ थे जिनके कारण सारे सैनिक एकसाथ बंधे हुए थे और स्वतंत्रता की मशाल थामे हुए थे यह बात सिकन्दर बेगम भी अच्छी तरह समझ चुकी थीं और उन्हे यह भी मालूम था कि यदि महावीर किसी तरह रास्ते से हट जायें तो पूरी क्रांति को आसानी से दबाया जा सकता है। अंतत: उन्होने नए वफादार सैनिकों की भर्ती करनी शुरू कर दी ताकि महावीर कोठा को किसी भी तरह पकड़ सकें । इधर महावीर कोठा भी जानते थे कि यदि उनकी गिरफ्तारी हो गई तो पूरा क्रांति का आंदोलन ही समाप्त हो जायेगा। इसलिये वह सीहोर से गायब हो गये और गढ़ी आंबापानी के फाजिल मोहम्मद खाँ के पास से सिपाही बहादुर सरकार की आगामी योजनाओं को चलाने लगे।
थक हार कर बेगम सरकार ने अंग्रेजी प्रशासन के सामने अपनी लाचारी प्रकट की और तब एक बड़ी सेना के साथ सेंट्रल इण्डिया फील्ड फोर्स का नेतृत्व करते हुए जनरल ह्यूरोज मऊ होते हुए सीहोर पहुँचा। बेगम ने ह्यूरोज के आते ही उससे सीहोर की सिपाही बहादुर सरकार को समाप्त करने को कहा और धीरे-धीरे करके जिन 356 क्रांतिकारियों को भोपाल की सेना ने पकडक़र जेल में बंद किया था, लोगों में भय उत्पन्न करने के लिए सबसे पहले उन्हे ही सजा देने के लिये कहा। क्रूर स्वभाव के ह्यूरोज ने तत्काल सारे कैदियों को सजा-ए-मौत का आदेश दे दिया। १४ जनवरी १८५८ के दिन सीहोर के सैकड़ो राष्ट्रवादी कैदियों को जेल से निकाला गया और एक मैदान पर सीवन नदी के किनारे बेंगन घांट सैकड़ाखेड़ी पर लाकर खड़ा किया गया। देश के लिये जान हथेली पर रखकर चलने वाले क्रांतिकारियों को मालूम था कि आज उनके साथ क्या होने वाला है, लेकिन उनके चेहरों पर जरा- भी शिकन नहीं थी, बल्कि वह दृंढनिश्चयी भाव से शांत थे। वो जानते थे कि उन्होने जो किया है वह अपनी मातृभूमि के लिये किया है। उन्होने सजा-ए-मौत से बचने के लिये किसी प्रकार का कोई निवेदन नहीं किया। चारों तरफ से बहुत विशाल अंग्रेजी सैना शस्त्र हाथ में लिये निहत्थे क्रांतिकारियों को घेरकर खड़ी हुई थी। क्रांतिकारियों के हाथ जकड़े हुए थे, उन्हे जंजीरों से बांधा गया था। अंतत: रोज के आदेश पर हजारों गोलियाँ एक साथ क्रांतिकारियों के सीनों पर अंग्रेज सैनिकों ने बरसाना शुरु कर दी। क्रांतिकारियों ने इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय, हर-हर महादेव, अल्लाहू अकबर के जयघोष करते हुए अपने सीने पर बड़ी दिलेरी से गोलियाँ खाई और मौत को गले लगा लिया। भारत माँ के लाड़ले इस मातृभूमि की गोद में हमेशा हमेशा के लिये सो गये। यहाँ इन शवों का अंतिम संस्कार सीहोर कस्बा के स्थानीय लोगों द्वारा तत्कालीन परम्परा के अनुसार किया गया। कई सिपाही नसरुल्लागंज-बुदनी बेल्ट के आसपास के भी थे। यहाँ चाँदमारी के पास पड़ी नदी किनारे की जमीनों पर बड़े-बड़े गड्डे खोदकर क्रांतिकारियों के शवों की यहाँ समाधियाँ बना दी गईं। ऐसी कई समाधियाँ यहाँ बन गई थीं जो आज भी जीर्ण-शीर्ण स्थिति में नजर आती हैं पर कोई भी नहीं जानता की वो समाधियाँ देश पर मर मिटने वाले क्रांतिकारियों की हैं।

इसके बाद जनरल रोज़ की सेना महावीर कोठ को ढूंढते हुए ३ फरवरी १८५८ को सागर पहुँची। इसी दिन सिपाही बहादुर सरकार के संस्थापक महावीर कोठ को रायसेन किलेदार खान जमां खान के कुछ सिपाहियों ने चारों तरफ से घेरकर गिरफ्तार कर लिया। जनरल रोज़ को जैसे ही यह खबर लगी तो उसने गुस्से में महावीर को तत्काल सजा-ए-मौत का आदेश ही दे दिया। लेकिन कुछ ही देर बाद उसने अपना आदेश बदल कर महावीर को जेल में रखने का आदेश दिया ताकि उनका देश के और कौन-कौन से क्रांतिकारियों से सम्पर्क है आदि सूचनाएँ प्राप्त की जा सकें। पर दिनोंदिन बढती उनकी लोकप्रियता से घबरा कर अंतत: एक दिन चुपचाप महावीर कोठ को बिना किसी जांच के १२ फरवरी १८५८ को सागर में फांसी पर लटका दिया गया और इस प्रकार महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महावीर कोठ ने देश के लिए अपना बलिदान कर दिया और देश की स्वतंत्रता के लिये सबसे व्यवस्थित रुप से खड़े किये गये आंदोलन ‘सिपाही बहादुर सरकार’ का अंत हो गया। शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।

~ लेखक : विशाल अग्रवाल
~ चित्र : माधुरी

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