आनन्द सुधासार दयाकर पिला गया।
भारत को दयानन्द दुबारा जिला गया।।टेक।।
डाला सुधारवारि बढ़ी बेल मेल की।
देखो समाज फूल फबीले खिला गया।। 1।।
अब कौन दयानन्द यति के समान है?।
महिमा अखण्ड ब्रह्मचर्य की महान है।। 2।।
काँटे कराल जाल अविद्या अधर्म के।
विद्या वधू को धर्म धनी से मिला गया।। 3।।
ऊँचे चढ़े न क्रूर कुचाली गिरा दिए।
यज्ञाधिकार वेद पढ़ो को दिला गया।। 4।।
खोली न कहाँ पोल ढके ढोंग ढोल की।
संसार के कुपन्थ मतों को हिला गया।। 5।।
शंकर दिया बुझाय दीवाली को देह का।
कैवल्य के विशाल वदन में विला गया।। 6।।