“भारतीय अभियंता-भविष्य चुनौतियाँ”

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अमेरिका ब्रिटेन अभियांत्रिकी के पीछे भागता जापान तकनीकी विश्व श्रेष्ठ हो गया । जर्मनी विश्व तकनीक में द्वितीय हो गया । भारत पीछे से और पीछे रह गया । अपवाद है कि कृषि अभियांत्रिकी – धन्यवाद डा0 स्वामी नाथन का, उस ऋषि का जिसने कपिल-गावस्कर, अमिताभ-गोविन्दा, अटल-देवगोड़ा से भी जयादा ऊँचा विश्व में भारत का नाम किया पर भारत औसत उसे नहीं जानता बाकी सबको है जानता । डा0 स्वामी नाथन है भारतीय अभियंता उसका ऋषि जीवन है भारतीय संकृति भूमि जुड़ा – धरा भूख निवारण उसका प्रयास उसका ब्रह्म यज्ञ है । महत फल, सब्जी, अनाज उसके ब्रह्म यज्ञ की उपज है ।

वर्तमान औसत भारतीय अभियंता की एक वाक्य में परिभाषा है – ”कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा – भानुमति ने कुनबा जोड़ा“ । यदि भारतीय अभियंता न सम्हला तो वह दिन दूर नहीं जबकि वह होकर रह जायेगा चूं चूं का मुरब्बा, न घर का न घाट का । अभी भारतीय अभियंता न घर का है न घाट का । कभी जापान घाट, कभी जर्मनी घाट, कभी लंदन घाट । यह घाट-घाट घूमता है । जिस दिन यह गंगा यमुना सरस्वती घाट पर पानी पियेगा यह घर का होने लगेगा । वर्तमान भारतीय अभियंता के सम्मुख निम्न बड़ी बड़ी चुनौतियां हैं ।

(1) विश्वीकरण (2) बहुराष्ट्रीय संस्थान प्रभाव (3) तकनीकी नवीनीकरण (4) उदासीकरण (5) तकनीकी ज्ञान का विश्वीकरण (6) तकनीकी विश्व में संस्कृति प्रवेश (7) पर्यावरण हृास (8) समुचित प्रशिक्षित मानव संसाधन विकास (9) चालीस प्रतिशत निर्धनता (10) बहत्तर प्रतिशत खोपड़ी निवास।

इतनी बड़ी चुनौतियां और आयातित अर्थ ज्ञान युक्त अपनी धरा टूटा – क्लब पाटी जुड़ा भारतीय अभियंता । यह इतना बड़ा प्रश्न चिन्ह है कि लखनऊ की भूल भुलैयया यहां मात है । क्या इस प्रश्न का कोई उत्तर है ? उत्तर है सरल सा । भारतीय अभियंता को आयोयित अर्थ ज्ञान के साथ भारतीय सांस्कृतिक सामाजिक तकनीकों के पूर्ण ज्ञान से युक्त कर भारत धरा से जोड़ किया जाये । इस पूर्ण ज्ञान का प्रारूप यहाँ दिया जा रहा है ।

कम से कम वर्ष स्वस्थ तथा स्वनिर्भर रहते ब्रह्म गुणों से आपूर्त स्वयं को करके जियें, देखें, सुनें, बोलें, होवें ।

सारे विश्व के औद्योगिक स्वास्थ्य मानकों का लक्ष्य उपरोक्त सर्वोच्च भाव है जिसकी ओर मानव जाति प्रयास कर रही है ।

(1) समस्त पर्यावरण शील पदार्थ (सूर्य, चांद, तारे मोमबत्ती, बल्ब आदि) (2) संपूर्ण अंतरिक्ष – वातायन (3) समस्त आधार तल (4) समस्त प्रवहण शील पदार्थ (ताप, सरलता गुणयुक्त, इलेक्ट्रोन, किरणें आदि) (5) समस्त औषधी व्यवस्था (6) वनस्पति व्यवस्था (7) घी, अंतरिक्ष, भू, देव संयुक्त व्यवस्था (9) सर्व सामंजस्य में स्थैर्य एवं संतुलन मानव को सहजतः सरलतः उपलब्ध हो ।

(1) बोध (प्रत्यक्ष ज्ञान) (2) प्रति बोध (अवचेतन ज्ञान, तथा सहज क्रियाएं) या विज्ञान द्वारा तू रचित (4) अनवद्राण । अविचलन, स्थिरता, नियम दृढ़ता द्वारा तू रचित । जागृति – जागने वाले – जागृत इंद्रिया गोपायन: (शक्तियाँ) रक्ष हैं तथा हमेशा बचाते हैं ।

वाणी में ऋग्वेद, मन में यजुर्वेद, पुरुष प्राणों में सामवेद तथा इन्द्रियों में अथर्ववेद रचा पचा हो । संपूर्ण अस्तित्व ऋत की नाभि (ब्रह्म) से सहज संयुक्त हो । हमारे लिए पृथ्वी लोक अंतरिक्ष लोक, घौ लोक स्थैर्य संतुलन से भरपूर हों । जल, औषधियां, वनस्पतियां सुखदा स्थैर्य संतुलन पूर्ण हों । संपूर्ण दव व्यवस्था एवं दिव्य गुण व्यवस्था पूर्ण, विज्ञान, शांति भी उपद्रव रहित हों । स्थैर्य एवं संतुलन से (पर्यावरण के अज्ञान का, भयंकर का, घोर का, क्रूर का, का राशन तथा नष्टीकरण हो तथा कल्याण स्वरूप अघोर, , ज्ञान, अक्रूर प्राप्त हों ।)

(1) शक्तिमय (2) श्रेष्ठ (3) तेजोमय (4) निश्चय युक्त सम्मिलित एकत्रित (5) वाक (परा, पश्यंती, मध्यमा, बैखरी) (प्रकाशित) (6) रहन सहन समृद्ध ।।3।। (7) एकत्व प्रगति (8) उत्तम संवाद (9) संानी मन संस्कारित (10) पूर्व स्थापित के समाज श्रेष्ठ आचरण (11) एक विचार (12) एक सभा (13) एक विचार युजित मन (14) एक चित (15) एक उद्देश्य दीक्षित (16) एक हविषमय (अन्न उपभोग मय) ।।स।। (17) एक ध्येय (18) एक हृदय (19) मन सम (20) शक्ति (21) समान भाव ।।द।।

आठ चक्र नौ द्वार मयी अयोध्य पुरी सुखम रथम है । इस रथ के रास्ते सत तम रज विषयों के हैं। घोड़े इन्द्रियों के हैं । मन लगाम हैं । बुद्धि सारथि हैं तथा आत्मा रथी हैं । आदर्श रथ वह है जिसका आत्मा रथी स्वस्थ चैतन्य ज्ञानी हैं । बुद्धि, मन, घोड़े क्रमशः उत्तरोत्तर संयम में हैं । विषय पथ मोक्ष पथ है सत पथ है ।
मेरे दोनों कान दूर दूर गिर रहे हैं । शालि, गेहूँ, जौ, कौद्रव, श्यामक, गुमद आदि खाद्य पदार्थों से मधु भरा है । वायु सरिताएं मधुवर्ष करती हैं । रात्रि मधु है, प्रात मधु है, धरा मधू है, आकाश से झरती बूंदें मधुमय हैं, घौ लोक मधुमय हैं, वनस्पति मधुमयी, सूर्य मधुमय, कार्य प्रेरण मधुमय है इन्द्रियां वाणियां हैं मधुमय कि ऋतायन ऋत का घर या संपूण सत्य सुशोभित हूं यह मैं ।

द्यौ – पृथिवी, दिन-रात्रि, सूर्य-चन्द्र, ज्ञान शौर्य, ऋत-अऋत, भूत भविष्य डरते नहीं हैं भ्रष्ट नहीं होते हैं इसी प्रकार मेरे प्राण अभय हैं ।

(1) परिवीत: त्रि ऋण भावमय, नियम सेवित, विद्या शिक्षा सुशोभित
(2) सुयासा: उत्तर त्रि शरीर मय सुवस्त्र धारित
(3) युवा = पूर्ण युवा
(4) द्विजन्मा: आचार्य आश्रम गर्भ में आचार्य निकटतम रह, अधिकतम हित पुरोहितम – दक्ष क्रिया
(5) त्रेयान – अतिशय शोभायुक्त – मंगलकारी
(6) स्वास्थ्य: उत्तम ध्यान युक्त
(7) विज्ञान द्वारा विद्या वृद्धि भावनामय
(8) धैर्य युक्त
(9) कवि – क्रांत दर्शी
(10) उन्नतिशील । सभावर्तनी – नौकरी क्षेत्र में सम रूपता से प्रवेश करता है। अस्तित्व पहचान संकट मुक्त । स्व सटीक पहनाव युक्त ।

(1) व्यक्तिगत – शौर्य – आदर्श (2) व्यक्तिगत शौर्य व्यवहार (3) आदर्श लक्ष्य (4) व्यवहार लक्ष्य (5) आदर्श समूह (6) व्यवहार समूह । जान डाक्टर एडेयर के डटहप इन्डिविज्युअल, एवीव टास्क तथा बाडी बिल्ड टीम से तुलनीय का प्रसंशनीय बुद्धियों – उंगलियों के क्रम अनुक्रम प्रयोग से होता है । पांव उंगलियां पंच समूह (1) अंगूठा – ज्ञान समूह (2) तर्जनी – शौर्य समूह (3) मध्यमा – संसाचक्र समूह (4) अनामिका – शिल्प समूह (5) छोटी – सेवा समूह का कार्य अभि कल्पना में चुटकी, कार्यारंभ में – घुग्घू बजाना तथा फ्लागम में – गिलास पकड़ना, उपयोग क्रमशः कार्यारंभ में धीर प्रशांत, यत्नावस्था में धीर ललित, प्राप्ताशा में धीर उद्वत, नियताप्ति में धीरोवात्त, फ्लागम में धीर प्रशांत आयक द्वारा प्रयोग नेतृत्व हैं ।

श्रेष्ठ कल्याण । जो निकटतम सुरक्षितम रखते हुए अधिकतम भला करें: प्रथम पुरोहित माता – गर्भावस्था में शिशु को योनि भव्हर में निकटम सुरक्षितत्तम रखते उसको स्व नाल से आहार – वायु देती मन ही मन उसकी सुख कल्पना बुनती – उसका भला करती । द्वितीय पुरोहितम – आचार्य – आश्रम गर्भ में शिशु को धारण कर आश्रम व्यवहार से उसका पोषण कर, उसे निकटतम रखता समार्वतनी के रूप में दूसरा जन्म देता। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पीरियड पीरियड पीरियड शिक्षक बदलती – अधुरोहितम है । ऋप्तिज – ऋतु की संधियों का ज्ञाता एवं उसके अनुसार यथावत व्यवहार नियोजक वैज्ञानिक – त्रुटिवजम । निमेष, काष्ठा, मुहूर्त, प्रातः, सन्ध्या, दिवस, सप्ताह, पक्ष, मास, वर्ष, शत वर्ष, युग, ब्राहम, दिन-रात, परान्त तक समय विभाजन संधियां हैं । इन संधियों पर विशेष यज्ञ विधान हैं तथा हैं तथा कार्य प्रवृति है । दैनिक कार्य प्रवृति इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना चलने के आधार पर हैं । बदन संबंधियों हेतु आसन है । चक्र संधियों हेतु ध्यान प्रक्रिया है । यज्ञेम आयु कल्पना है । यह ऋटित्व, विज्ञान कार्य परिस्थितियों का सर्वोच्च माप है ।

स्व. डॉ. त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय
पी.एच.डी. (दर्शन – वैदिक आचार मीमांसा का समालोचनात्मक अध्ययन), एम.ए. (आठ विषय = दर्शन, संस्कृत, समाजशास्त्र, हिन्दी, राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र तथा लोक प्रशासन), बी.ई. (सिविल), एल.एल.बी., डी.एच.बी., पी.जी.डी.एच.ई., एम.आई.ई., आर.एम.पी. (10752)

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