ब्राह्मणों ने कीनी ब्रह्मविद्या को विदेशपार।
अविद्या अज्ञान को अंधार जापे आयो है।।
विद्यादान ध्यान-धर्म ब्रह्म को न जान्यो मर्म।
पाचकों को कर्म एक विप्र-मनभायो है।।
वेद को न लखो भेद परस्पर भयो भेद।
सीमन्त प्रेतान्न-श्राद्ध खंत हु से खायो है।।
नहीं नेक टेक एक वर्ण में विवेक रेख।
देख देख दिल दयानन्द को दुखायो है।।११।।
~ दयानन्द बावनी
स्वर : ब्र. अरुणकुमार “आर्यवीर”
ध्वनि मुद्रण : कपिल गुप्ता, मुंबई